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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनगारधर्मामृतवर्षिणी टी० अ०८ जितशवादिष राक्षादीक्षा ग्रहणादिनिरू० ५५१ प्रत्याख्यानेन, अपानकेन-पानरहितेन चतुर्विधाहारपरित्यागेनेत्यर्थः, व्याधारितपाणिः-प्रलम्बितभुजद्वयः, क्षीणे प्रणप्टे सति वेदनीये आयुष्के नाम्नि गोत्रे च कर्मणि-सिद्धः सिद्धिं गतः । एवं परिनिर्वाणमहिमाणितव्या-यथा जम्बूद्वीप प्रज्ञप्त्याम् , यथा ऋषभस्य निर्वाणमहिमा मोक्तस्तथा मल्लिजिनस्यापि बोध्यइत्यर्थः । नन्दीश्वरे नन्दीश्वरद्वीपे अष्टाहिका महिमा अष्टाहसाध्यमहोत्सवः देवः कृतः । कृत्वा यावत्-प्रतिगताः यस्यादिशः प्रादुर्मुतास्तां दिशं प्रतिगताःप्रतिनिवृत्ताः। . हित भक्त प्रत्याख्यान करके दोनों हाथ फैलाये हुए अवशिष्ट वेदनीय आयु नाम एवं गोत्र कर्म के नष्ट होते ही सिद्धि अवस्था प्राप्त करली ! ( एवं परिनिव्वाणमहिमा भाणियन्या जहा जंबूद्दीवपण्णत्तीए ) जिस प्रकार जंबूदीप प्रज्ञप्ति में ऋषभ देव के निर्वाण का महिमा प्रकट की गई है उसी तरह इन मल्ली भगवान के निर्वाण की भी महिमा जान नीचाहिये । ( नंदीसरे अट्टाहिया महिमा जाव पडिगया) देवताओं ने मल्ली प्रभु के इस निर्वाण कल्याणक की महिमा नंदीश्वर द्वीप में ८ दीन तक लगातार उत्सव कर के मनाई। बादमें वे वहांसे जिस दिशासे प्रकट हुए थे उस दिशाको वापिस चले गये अब सुधर्मास्वामी जम्बूस्वामी से कहते हैं (एवं खलु जम्बू ! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स नायज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते तिबेमि ) हे जम्बू! श्रमण भगवान् महवीर ने कि जो सिद्धिस्थान के अधिपति बन चुके हैं इस आठवें ज्ञाता ध्य. બંને હાથ ફેલાવતાં અવશિષ્ટ વેદનીય, આયુ, નામ અને ગેત્ર કર્મને નાશ થતાં જ સિદ્ધિ અવસ્થા મેળવી લીધી, (एवं परिनिव्वाणमहिमा भाणियबा जहा जंबूद्दीवपण्णत्तीए) જે પ્રમાણે જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિમાં ઋષભદેવને મહિમા આલેખવામાં આવ્યો છે તે પ્રમાણે જ મલી ભગવાનના નિર્વાણને મહિમા પણ જાણ જઈએ. (नदीसरे अट्टाहिया महिमा जाव पडिगया ) भही प्रभुना मा निना स्याકારક મહિમાને ઉત્સવ દેવતાઓએ નંદીશ્વર દ્વીપમાં સતત આઠ દિવસ સુધી ઉજવ્યો. ત્યારપછી તેઓ ત્યાંથી જે દિશામાંથી પ્રગટ થયા હતા તે દિશા તરફ પાછા જતા રહ્યા. હવે સુધર્માસ્વામી જંબુસ્વામીને કહે છે – ( एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स नायज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते तिबेमि) હે જંબૂ! શ્રમણ ભગવાન મહાવીરે-કે જેઓ સિદ્ધિસ્થાનના અધિપતિ For Private And Personal Use Only
SR No.020353
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages845
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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