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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हाताधर्मकथा - सुधर्मास्वामी प्राह-' एवं खलु जंबू ' इत्यादि । एवं खलु हे जम्बूः ! श्रम णेम भगवता महावीरेण-यावस् सिदिगतिमामधेय स्थान समाप्तेन, अष्टमस्य ज्ञाताध्ययनस्य अयमर्थः उक्तरूपो भावः प्राप्तः कथितः इति ब्रवीमि अस्य व्याख्यानं पूर्ववत् ॥ सू० ४०॥ इति श्री-विश्वविख्यात-जगदूवल्लभ-प्रसिद्धवाचकपञ्चदशभाषाकलितललितकलापालापक-प्रविशुद्धगद्यपद्यनैकग्रन्थनिर्मापक-वादिमानमर्दक-श्रीशाहूच्छ. अपतिकोल्हापुरराजदत्त- जैनशास्त्राचार्य' पदभूषित-कोल्हापुरराजगुरु-बालब्रह्मचारि-जैनाचार्य-जैनधर्मदिवाकरपूज्यश्री-घासीलालप्रतिविरचितायां 'ज्ञाताधर्मकथाङ्ग' सूत्रस्यानगारधर्मामृतव विण्याख्यायां व्याख्यायां अष्टममध्ययनं संपूर्णम् ॥ ८ ॥ धन का यह पूर्वोक्त रूप अर्थ प्ररूपित किया है । अतः जेसा प्रभुने अपमे मुखारविन्द से कहां और जैसा उनसे मैंने सुना-वैसा ही यह तुम से कहा है । सू० ॥ ४०॥ श्री जैनाचार्य जैनधर्म दिवाकर श्री घासी लालजी महाराज कृत "ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र" की अनगारधर्मामृतवर्षिणी व्याख्या का आठवा अध्ययन समाप्त ॥८॥ થઈ ગયેલા છે–આઠમા જ્ઞાતાધ્યયનને આ ઉપર લખ્યા મુજબને અર્થ નિરૂ પિત કર્યો છે. એટલા માટે પ્રભુએ પિતાના મુખારવિંદથી જે પ્રમાણે મને मुद्यो मन में सामन्यात प्रभारी १ तमन में यो छ. ॥ सूत्र ४० ॥ આઠમું અધ્યયન, સમાપ્ત. For Private And Personal Use Only
SR No.020353
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages845
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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