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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्ञाताधर्मकथासूत्र संकासा' अलकापुरीसंकाशा = कुबेरनगरीमदृशी ‘पमुइयपक्कीलिया' प्रमुदितप्रक्रीडिता 'पमुइय' प्रमुदिताः प्रमोदयुक्ताः, ' पकीलिया' प्रक्रीडिताः विविधक्रीडनपराः लोका यत्र सा, पच्चक्खं देवलोयभूया' प्रत्यक्षं देवलोकभूता प्रत्यक्षीभूतदेवलोकवत् प्रतीयमानेत्यर्थः ॥ २ ॥ ___मूलम्-तीसे णं बारवईए नयराए बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसाभाए रेवतगे नाम पव्वए होत्था, तुंगे गगणतलमणुलिहंतसिहरे णाणाविहगुच्छगुम्मलयावल्लिपरिगए हंसमिगमयूरकोंचसारसचकवायमयणसालकोइलकुलोववेए अणेगतडकडगवियरउज्झरयपवायपन्भारसिहरपउरे अच्छरगणदेवसंघचारणविज्जाहरमिहुसंविचिन्ने निच्छच्चणए दसारवरवीरतेल्लोकबलवगाणं, सोमे सुभगे पियदसणे सुरूवे पासाईए ॥ सू०३॥ . टीका-'तीसे णं' इत्यादि । तस्याः खलु द्वारावत्या नगर्या बहिरुत्तरपौरस्त्ये दिग्भागे 'रेवतगे' वैतको नाम 'पव्वए' पर्वतः ‘ होत्था ' आसीत् , स अलकापुरी (कुबेर की नगरी जैसी सुन्दर होती है ठीक वैसी ही यह भी सुन्दर थी (पमुइयपक्कीलिया) इस में निवास करनेवाले जन सदा हर्षित रहते थे और विविध प्रकार की क्रीड़ाओ में तत्पर रहते थे (पच्यक्खं देवलोयभूया) इसलिये प्रत्यक्ष में यह नगरी देवलोक के समान प्रतीत होती थी। सूत्र “२" 'तीसेणं बारवईए' इत्यादि टीकार्थ-(तीसेणं बारवईए नयरीए बहिया) उस द्वारावती नगरी के बाहिर ( उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए रेवतगे नाम पन्चए होत्था ) उत्तर वा २ डाय छ तेवीस ते नगरी ५५ सु४२ ती. (पमुइयपक्कीलिया) તેમાં રહેનારા નાગરિકે હમેશાં પ્રસન્ન રહેતા હતા, અને જાત જાતની રમત (alsil) ०५ed रडता उता. (पच्चक्खं देवलोयभूया ) तथा ! नाश प्रत्यक्ष सवा साती ती. ॥ सूत्र "२" ॥ 'तीसे णं वारवईए' इत्यादि ॥ Aथ-(तीसे ण बारवईए नयरीए बहिया) वापती नगरी मार ( उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए रेवतगनामपव्वए होत्था ) उत्तर पूर्व हिशमा भेटले. For Private And Personal Use Only
SR No.020353
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages845
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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