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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अ० ५ द्वारापतीनगरिवर्णनम् समये 'वारवई' द्वारावतीनाम द्वारकाऽपरनाम्नी नगर्यासीत् , सा कीशी इत्याह-पाईणपडीणायया' प्राची प्रतीच्यायता प्राचीतः प्रतीच्यामायता पूर्वस्या दिशः समारभ्य पश्चिमायां दिशि दीर्घत्यर्थः । 'उदीणदाहिणवित्थिन्ना' उदगदक्षिणविस्तीर्णा उत्तरस्यां दिशः समारभ्य दक्षिणस्यां दिशि विस्तीर्णा, 'नवजोयणविस्थिन्ना ' नवयोजनविस्तोर्णा, 'दुवालसजोयणायामा' द्वादशयोजनायामा द्वादशयोजनदोर्घा, 'धणवइमइनिम्मिया' धनपतिमतिनिर्मिता धनपतिः कुबेरस्तस्य मत्या बुद्धया निर्मिता, 'चामीयर-पवर-पागार-णाणामणि-पंचवन - कवि - सीसग - सोहिया' चामीकरप्रवरमाकारनानामणिपञ्चवर्णकपिशीर्षक शोभिता,चामीकरस्य प्रवरः प्राकारस्तस्य यानि नानामणिपश्चवर्णकपिशीर्षकानि तैः शोभिता, सुवर्णमयप्रकृष्टप्राकारस्य यानि चन्द्रकान्तादिविविधमणिमयानि पञ्चवर्णानि कपिशीर्षकाणि ' कंगुरा' इति भाषाप्रसिद्धानि, तैः शोभिता 'अळ्यापुरिहै-(तेणं कालेणं तेणं समएणं वारवईनामं नयरी होत्था ) उस समय और उस काल में द्वारावती नामकी नगरी थी ( पाईण परीणायया) यह नगरी पूर्व दिशासे पश्चिम दिशा तक लंबी थी और ( उदीणदाहिण वित्थिना ) उत्तरदिशा से लेकर दक्षिण दिशा तक विस्तर्ण थी। (नवजोयणविस्थिन्ना) नौ योजन का इसका विस्तार था (दुवालसजोयणायामा) १२ बारह योजन की यह लंबी थी । (धणवइमइ निम्मिया) धनपति- कुबेर ने इसे अपनी बुद्धि से बनाया था ( चामीयर पवर पागारणाणामणि पंचवन्न कविसीसग सोहिया) इसका जो प्राकार (दिवार) था वह सुवर्ण से निर्मित हुआ था। तथा इसके जो कंगूरे थे वे पंचवर्णवाले नाना मणियों से बनाये गये थे । अतः प्राकार और उसके कंगूरों से यह नगरी बड़ी सुहावनी लगती थी । (अलपापुरी संकासा) छ, ( तेण काले ण तेण समएणं वारवइ नाम नयरी होत्था) ते आणे अन ते समये वापती नामे नारी उती. (पाईण परीणायया ) मा नगरी पूर्वथा भासन पश्चिम दिशा सुधा भी मन (उदोण दाहिण विधिन्ना) उत्तर दिशाथी भासन क्षि हिशा सुधी पडी उती. ( नव जोयणवित्थिन्ना ) नव योन संधी नगरीमा विस्तार हता. ( दुवालसजोयणायामा ) मा२ योन समीत Giमी ती. (धणवइमइनिम्मिया) धनपति-२ मा नगरी ने पोतानी मुद्धिथी मनावी ती ( चामीयरपवरपागार - णोणामणि - पचवन्नकविसीसगसोहिया ) ते શહેરને કેટ (પ્રાકાર) સોનાથી બનાવવામાં આવેલ હતું. તેના કાંગરાઓ પાંચ રંગના અનેક મણિઓ વડે બનાવવામાં આવ્યા હતા. કોટ અને કાંગ शमाथी ते नगरीमती ती. (अलयापुरीसंकासा) पुरी (अमेरनगरी) For Private And Personal Use Only
SR No.020353
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages845
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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