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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका भ०८ भङ्गराजवरित निरूपणम् • O Sवतरणस्थानं वर्तने, तत्रैवोपागच्छति, उपागत्य च पोतं नावं, 'लबेति, लम्बयन्ति तीरस्थाने कश क्रुषु रज्ज्वादिभिर्निबध्य स्थिरीकुर्वन्ति । लंबित्ता' लम्बविश्वाशकटी शकटिकं लघुशकटहच्छकटानां समूहं सज्जयन्ति = नवीनोपकरणरज्वादिभिः परिष्कुर्वन्ति, सज्जयित्वा तं गणिमं धरिमं मेयं परिच्छेयं चतुर्विधं क्रयाणकसमूहं शकटकटिके' संकार्मेति संक्रामयन्ति = स्थापयन्ति, संक्राम्य = तेऽरहन्नक म मुखाः सांयात्रिकाः शकटीशाकटिकं योजयन्ति = बलीवर्दादिभिर्योजितं कुर्वन्ति, योजयित्वा शकटारूढास्ते यचैव मिथिला राजधानीवर्तते तत्रैवोपागच्छन्ति, उपागत्य मिथिलायां राजधान्यां बहिरग्रोद्याने प्रधानोद्याने शकटीशाकटिकं मोचयन्ति शकटेभ्यो बलीवर्दान् पृथक्कुर्वन्ति, मोचयित्वा मिथिलायां राजधान्यां तन्मसे जहां गंभीर नाम का नौका के ठहर ने का स्थान था (वंदर गाह था ) वहां पहुंचे । ( उवागच्छित्ता पोयं लबेंति ) वहां पहुंच कर उन लोगों ने नौका को खड़ा कर दिया- तीर स्थित अनेक खूंटों में रज्ज्वादि से उसे धर स्थिर कर दिया। (लंबित्ता सगड़सागढ़ सज्जेति ) खड़ा करके छोटी छोटी गाडियों को और गाड़ों को तैयार किया - नवीन उपकरण एवं रज्ज्वादि से उन्हें सज्जित किया । ( सज्जित्ता तं गणिमं ४ सगडि ४ संकार्मेति ) सज्जित करके फिर उन्हों ने उस गणिम, धरिम, मेय एवं परिच्छेद्य रूप चतुर्विध- ऋयाणक को नौका से उतार कर उन गाडी गाडों में भरा ( संकामित्ता सगडी० जोएंति, जोहत्ता जेणेत्र मिहिला तेणेव उवागच्छंति) भर कर फिर उन्हों ने उन्हें जोता-जोत कर जहां मिथिला नगरी थी वहां वे आये। (उवागच्छित्ता मिहिलाए रायहाणीए बहिया अग्गुज्जाणंसि सागर्डसगडी मोएड मोहन्ता मिहिलाए रायहाणीए तं महत्थं महग्धं महरिहं विउलं रायरिहं पाहुडे कुंडलजुयलं ( उवागाच्छित्ता पोयलवे 'ति ) त्यां पडथीने तेसोथो नावनें उली शमी. विनाशनी छोरीगोथी तेने सारी रीते गांधी हीधी ( लंबित्ता सगड़ सागड सज्जेति ) त्यार पछी नानी गाडीओ। ते मोटी गडांगाने होरीमा वगेरे साधनोथी सन्न अर्था ( सज्जिता व गणिम ४ सगडि ४ स कामे ति ) સજ્જ કર્યાં બાદ તેમણે ણિમ, ધરમ, મેય અને પરિચ્છેદ્ય રૂપ ચાર પ્રકારની વેચાણુની વસ્તુઓને નાવમાંથી ઉતારીને ગાડીએ અને ગાડા એમાં ભરી (संकामित्ता सगडी० जोएंति, जोपत्ता जेणेव महिला तेणेत्र उवागच्छंति ) સામાન ભર્યા પછી તેમણે ગાડીએ અને ગાડાંઓને જોતર્યાં અને જોતરીને જ્યાં મિથિલા નગરી હતી ત્યાં ગયા. ( उवागच्छित्ता महिलाए रायहाणीए बहिया अग्गुज्जाणंसि सगडी सागडं For Private And Personal Use Only
SR No.020353
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages845
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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