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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अ०८ अङ्गराजचरिते मरहन्नकश्रावकवर्णनम् ३५१ कप्पड़, तव सीलब्बयगुणवेरमण पच्चक्खाण पोसहोववासाई चालित्तए वा एवं खोभेत्तए वा खंडित्तए वा भंजित्तए वा उज्झित्तए वा परिच्चइत्तए वा, तं जइणं तुम सीलव्वय जाव ण परिच्चयसि तो ते अहं एयं पोयवहणं दोहि अंगलियाहिं गेहामि, गिहित्ता सत्ततालप्पमाणमेत्ताई उड्डे वेहासं उव्विहामि, उन्विहिता अंतो जलंसि णिव्वोलेमि जेणं तुमं अट्ट. दुहवसते असमाहिपत्ते अकाले चेव जीवियाओ ववरोविजसि, तएणं से अरहन्नए समणोवासए तं देवं मणसा चेव एवं वयासी-अहं णं देवाणुप्पिया ! अरहन्नए णामं समणोवासए अहिगयजीवाजीवे नो खलु अहं सके केणइ देवेण वा जाव निग्गंथाओ पावयणाओ चालित्तए वा खोभित्तए वा तुमं णं जा सद्धा तं करेहित्तिकटु अभीए जाव अभिन्नमुहरागणयणवन्ने अदीणविमणमाणसे निचले निप्फंदे तुसिणीए धम्मज्झाणोवगए विहरइ ॥ सू० २० ॥ टीका-अरहन्नकवज्यैः सांयात्रिकैर्य थानुष्ठितं तदुक्तम्, अधुनाऽरहन्नकेन पिशाचरूपमवलोक्य यत् कृतं तदाह-'तएणं' इत्यादि । ततस्तदा खलु स अरहबकः अरहन्नकनामको मुख्यः सांयात्रिका, श्रमणोपासका श्रावकस्तं दिव्यम् तएणं से अरहन्नए इत्यादि। टीकार्थ-(तएणं) इसके बाद मुख्य सांयात्रिक अरहन्नक को छोड़ कर अन्य सायात्रिकों ने जो २ किया उस के बाद (समणोवासए अरहन्नए) श्रमणोपासक अरहन्नक ने (तं दिव्वं पिसायरूवं पासित्ता ) जब दिव्य 'तएणं से अरहम्नए ' त्यात ટીકાઈ-(vii) અરહુન્નક સિવાયના બીજા સયાત્રિકોની આવી હાલત થઈ त्या२ मा ( समणोवासए अरहन्नए) श्रमपास २२७न्न (तं दिव्वं पिसायरूवं पासित्ता ) या३ ते हिव्य अपूट-अभुत-पिशायन३५ने For Private And Personal Use Only
SR No.020353
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages845
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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