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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भनगारधर्मामृतवर्षिणी टोका अ० ८ अङ्गराजचरितनिरूपणम् ३२५ परिष्कुर्वन्ति, सज्जयित्वा गणिमस्य ४ भाण्डकस्य शकटीशाकटिकं भरन्तिपूरयन्ति । भृत्वा-पूरयित्वा शोभने तिथिकरणदिवसनक्षत्रमुहूर्ते विपुलं-विस्तीर्णम् अशनपानखाद्यस्वाद्यं चतुर्विधमाहारमुपस्कारयन्ति = निष्पादयन्ति । मित्रज्ञातिम. मुखान् भोजनवेलायां भोजयन्ति, यावद् आपृच्छन्ति स्म. अरहन्नक प्रमुखाः संयात्रानौकावाणिजका यात्रावसरे मित्रज्ञातीन् भोजयित्वा वाणिज्यार्थ नौकया समुद्रसंतरणकामास्तान मित्रज्ञातीन् स्वस्वानुमति प्रदानार्थ प्रार्थयन्ति स्मेत्यर्थः। आपृच्छय-संपार्थ्य शकटीशाकटिकं योजयन्ति वृषभैः सह संयोजयन्ति संयोज्य चम्पाया नगर्या मध्यमध्येन यौव गम्भीरक गम्भीरकाख्यं समुद्रतीरवर्ति पोतस्वीकार कर के फिर उन सबने चारों प्रकार के क्रयाणक को लिया-लेकर उसे नूतन रज्ज्वादि से परिष्कृत की गई गाडी और गाड़ों में भर दिया। (भरित्ता सोहणंसिं तिहिकरण दिवसनक्खत्तमुहुत्तंसि विपुलं असणं ४ उवक्खडावेंति) भर कर फिर उन्हों ने शुभतिथि, करण दिवस नक्षत्र रूप मुहूर्त में विपुल मात्रा में अशन, पान, खाद्य और स्वाद्यरूप चतुर्विध आहार को बनवाया - (मित्तणाइ० भोअणवेलाए भुंजावेंति जाब आपुच्छंति) जब वह बन कर तैयार हो चुका-तो उन्हों ने अपने २ मित्र, ज्ञाति आदि परिजनों को भोजन के अवसर पर भोजन करवाया और फिर उन से पूछा-हम लोग बाहर व्यापार के लिये जाना चाहते हैंइसलिये आप लोग इस विषय में अपनी २ अनुमति प्रदान करें-इस तरह उन से प्रार्थना की- ( अपुच्छित्ता) पूछ कर (सगडसागडियं जोयंति, जोइत्ता चपाए नयरीए मज्झमझेणं जेणेव गंभीरए पोय ચારે જાતની વેચાણની વસ્તુઓને નવા દેરડાઓવાળી ગાડી તેમજ ગાડાઓમાં મૂકી. (रित्ता सोहणंसि तिहिकरणनक्खत्तमुहुत्तसि विपुलं असणं४ उवक्खडावेति) ભરીને તેઓએ શુભતિથિ, કરણ, નક્ષત્રરૂપ મુહૂર્તમાં અશન, પાન, ખાદ્ય અને સ્વાદ્ય આમ ચારે જાતના આહાર પુષ્કળ પ્રમાણમાં બનાવડાવ્યા. (मित्ताणाइ ० भोअणवेलाए भुजावें ति जाव आपुच्छंति) न्यारे माडा२ तैयार થઈ ગયે ત્યારે તેઓએ પોતાના મિત્ર જ્ઞાતિ વગેરે પરિજનેને જમવામાટે બેલાવીને જમાડયા અને જમ્યા પછી તેમને તેઓએ પૂછયું “ અમે બધાં વેપાર ખેડવા માટે બહાર જવા ઈચ્છીએ છીએ ” એથી તમે બધા અમને અનુમતિ આપે. આ રીતે તેઓએ તેમને વિનંતી ४३०. ( आपुच्छित्ता) मा मेजवान. ( सगडसागडियं जोयंति जोइत्ता चपाए नयरीए मज्झमज्झेणं जेणेव For Private And Personal Use Only
SR No.020353
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages845
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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