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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अंगाधर्मामृतवरिंग टीका अ० ८ कोललाधिपतिस्वरूपनिरूपणम् १७ नाईति । मल्लीकुमार्या यदस्ति श्रीदामकाण्डं तस्य शोभासुगन्धादिगुणानां लक्षा. शमपि प्राप्तुं न शक्नोति पद्मावत्याः श्रीदामकाण्ड मित्यर्थः । ___ ततः खलु प्रतिबुद्धिममात्यमेवमवादीत्-हे देवानुपिय! कीदृशी खलु मल्ली विदेहराजवरकन्या यस्याः खलु संवत्सरपतिलेखनके श्रीदामकाण्डस्य पद्मा. वत्या देव्या श्रीदामकाण्डं शतसहस्रतमामपि कलां नार्हति ? । ततः खलु सुबुद्धिः प्रतिबुद्धिमिक्षाकुरानमेवमवादीत्-हे स्वामिन् ! विदेह राजवरकन्यका मल्लीमाम्नी दामकांड लक्षांश (लाखमा भाग भी सुन्दर और सुगंधीत में नहीं हैं ) भी नहीं हैं (तएणं पडिबुद्धी सुधुद्धि अमच्चं एवं वयासी ) इस प्रकार सुनने के बाद प्रतिबुद्धि ने सुबुद्धि अमात्य से ऐसा कहा(केरिसियाणं देवाणुप्पियो ! मल्ली वीदेहरायवर कन्ना ) हे देवानुप्रिय! विदेह राजा की वह उत्तम कन्या मल्लो कुमार कैसो है कि (जस्स णं संवच्छरपडिलेहणयंसि सिरिदामगंडस्स पउमावईए देवीए सिरिदामगंडे सयसहस्सत्तमंपि कलं न अग्घइ ) जिस की वार्षिक जयं. ती के श्रीदाम कांड के समक्ष पद्मावती देवी का यह श्रीदामकांड लक्षांश भी नही ज्ञात हो रहा है। (तएणं सुबुद्धिपडिबुद्धिं इक्खागुरायं एवं बयासी) इस तरह सुनकर सुबुद्धि ने इक्ष्वाकु वंशों में उत्पन्न प्रतिबुद्ध राजा से ऐसा कहा (विदेहरायवरकन्नगा सुपहडिय कुम्मुन्नयचारूचरणा वन्न ओ ) स्वा. (तस्स णं दिरीदामगंडस्स इमे पउमावईए सिरीदामगंडे सय सहस्सतमे फरलं ण अग्धइ) તેની સામે પદ્માવતી દેવીને આ શ્રીદામકાંડ લક્ષાંશ પણ નથી. એટલે કે સુગંધ કે સૌંદર્ય બંનેની દષ્ટિએ મલીકુમારીને જન્મત્સવ પ્રસંગના श्रीहामनी सामे मा नथी. (तएण पडिबुद्धो सुबुद्धि अमच्च एवं क्यासी) मारीत सामजीने प्रतिभुद्धि सुमुद्धि समात्यने या प्रमाणे ४थु(केरिसियाण देवाणुप्पिया! मल्लो वींदेहरायवर कन्ना) आनुप्रिय ! विड રાજ પુત્રી મલીકુમારી એવી કેવી છે કે. " जस्सणं संवच्छरपडिलेहणयसि सिरिदामगंडस्स पउमावईएदे वीए सिरि दामगंडे सयसहस्सत्तमं पि कलं न अग्धइ" જેમના જન્મોત્સવના શ્રીદામકાંડની સામે પદ્માવતી દેવીને આ શ્રીદામ કાંડ લક્ષાંશ પણ લાગતું નથી. (तएण सुबुद्धि पडिबुद्धिं इक्खागुराय एवं वयासो) मारीते सांभणीन पावशमा पनि प्रतिमुद्ध Mने सुमुद्धिये ४थु (विदेहरा यवरकन्नगा For Private And Personal Use Only
SR No.020353
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages845
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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