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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org ય ज्ञाताधर्मकथासूत्रे तितमं नवोपवासरूपं कुर्वन्ति । कृत्वाऽष्टादशं कुर्वन्ति कृत्वा विंशतितमं कुर्वन्ति कृत्वा षोडश कुर्वन्ति कृत्वाऽष्टादशं कुर्वन्ति कृत्वा चतुर्दशं कुर्वन्ति कृत्वा षोडशं कुर्वन्ति कृत्वा द्वादशं कुर्वन्ति कृत्वा चतुर्दशं कुर्वन्ति कृत्वा दशमं कुर्वन्ति कृत्वा द्वादशं कुर्वन्ति कृत्वाऽष्टमं कुर्वन्ति कृत्वा दशमं कुर्वन्ति कृत्वा षष्ठं कुर्वन्ति, कृ पारणा किया फिर ९ उपवास किये ( करिता अट्ठारसमं करेंति ) उस का पारणा किया फिर ८ उपवास किये (करिता वीसइमं करेंति) आठ उपवास करके उस का पारणा किया फिर ९ उपवास किये (करितो सोलसमं करेंति ) ९ उपवास करके उस का पारणा किया फिर ७ उपवास किये ( करिता अट्ठारसमं करेंति ) सात उपवास का पारणा किया-८ उपवास किये ( करिता चोदसमं करेंति ) उन आठ उपवास का पारणा किया - फिर ६ उपवास किये ( करिता सोलसमं करेंति ) ६ उपवास का पारणा किया फिर ७ उपवास किये ( करिस्ता दुवालसमं करेंनि ) ७ उपवास करके उस का पारना किया- फिर ५ उपवास किये ( करिता चाउदसमं करेंति) ५ उपवास करके उस का पारणा किया फिर ६ उपवास किये (करिता इसमें करेंति ) ६ उपवास करके पारणा किया फिर ४ उपवास किये ( करित्ता दुवालसमं करेंति ) ४ उवास का पारणा किया - पारणा करके ५ उपवास किये ( करिता अट्टमं करेंति ) ५ उपवास का पारणा किया फिर ३ उपवास किये ( करिता दसमं करेति " अने तेनां पार वीसइमंकरेति " २५ यह दूरी नव उपवासो अर्था. “ करिता भट्ठारसमं हुर्ष्या, त्यार माह आउ उपवासो र्या. “ करिता વાસેા કરીને તેનાં પારણાં કર્યાં. ત્યાર પછી उपवासेो र्या “ करिता सोलसमं करेति " नव उपवास ने तेनां पारगांय त्यार आह सात ८८ વ उपवासेो र्या “ करिता अट्ठारसमं करेति સાત ઉપવાસનાં પારણાં કરીને म उपवासर्या “ करित्ता चोहसमं करेति " भने मह उपवासानां पारणां . त्यार पछी छ उपवास “करिता सोलसमं क्ररेति " छ उपवासोना પારણાં કરીને સાત ઉપવાસ કર્યો करिता दुबालसमं करें ति ” सात उपवास अरीने तेनां पार त्यार माह पांय उपवास करेति " यांन्य उपवासो उरीने तेनां पारणां य. 5. “ करित्ता दसम करेति छ उपवासनां पायां ચાર ઉપવાસ કર્યો. " करिता दुबालसमं करें ति " . " करिता चाउदसमं બાદ છ ઉપવાસે ત્યાર કર્યાં, અને ત્યાર પછી ચાર ઉપવાસના પારણાં रीने पांय उपवासो अर्ध्या " करिता अट्टमं करेंति " यांय उपवासनां पारणां ईर्ष्या ने त्यार मात्र उपवासो अर्था. “ करिता दसम करेति " ત્રણ "6 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " For Private And Personal Use Only
SR No.020353
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages845
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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