SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 321
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अ० ८ महाबलादिषटाजचरितनिरूपणम २६५ त्वाऽष्टमं कुर्वन्ति कृत्वा चतुर्थ कुर्वन्ति, कृत्वा षष्टं कुर्वन्ति कृत्वा चतुर्थ कुर्वन्ति सर्वत्र सर्वकामगुणितेन पारयन्ति । चतुर्थ कुर्वन्तीत्यादि-सर्वत्र सर्वकामगुणितेन पारयन्तीत्यन्तस्यायं निष्कर्षः-सिंहनिष्क्रीडितं तपोद्विविधं महत् क्षुल्लकंच । तत्रानुलोमगत्याकरेंति ) ३ उपवास का परणा किया फिर ४ उपवास किये ( करित्ता छटुं करेंति ) ४ उपवास का पारणा किया-फिर २ उपवास किये ( करित्ता अट्टमं करेंति ) २ उपवास का पारणा करके फिर ३ उपवास किये ( करित्ता चउत्थं करेंति ) ३ उपवास का पारणा करके फिर १ उपवास किया ( करिसा छ8 करेंति ) १ उपवास का पारणा करके फिर २ उपवास किये ( करित्ता चउत्थं करेंति) २ उपवास का पारणा करके फिर एक उपवास किया ( सव्वस्थ सव्वकामगुणिएणं पारेति ) पारणा जो इन्हों ने किया वह सर्वत्र विगय सहित किया ( एवं खलु एसा खुहागसीहनिक्कीलियस्स तवोकम्मस्स पढमा परीवाडी छहि-मासेहिं सत्तहिं अहोरत्तेहिं य अहासुतं जाव अहाराहिया भवइ ) इस तरह क्षुद्र सिंहनिष्क्रीडित तप की प्रथम परिपाटी है। यह छह मास और सात दिन रात तक सूत्रोक्त विधि के अनुसार यावत् आराधित होती है। अर्थात् इसके करने में सात दिन रात अधिक ६ मास का समय लगता है। यहां "सर्वकामगुणित" ऐसा जो पारणा का विशेषण उपवासाना पारपशन त्या२ पछी या२ पास ४ा. "करित्ता छ करें ति" थार वासना ५२i ा', त्या२ माह मे पास ४ा. “करिता अदम' करें ति" में 6वासनां पा२४i a] वास या " करित्ता चउत्थ करें ति त्रा 6वासना पा२/i 3रीने मे 64वास ध्या. “करित्ता छद्रं करेंति" मे वासना पा२४ां उरीन मे पास ४ा. “ करित्ता चउत्थ करेंति में वासनां पा२४ ४शन मे पास ये “ सव्वत्थ सव्व कामगुणि एण पारे ति" तमामे मां पारण! विय सहित यो ता. __( एवं खलु एसा खुट्टागसीहनिक्कीलियस्स तवोकम्मस्स पढमा परिवाडी छहिं मासेहिं सत्तहिं अहोरत्तेहिंय आहामुत्तं जाव अहाराहिया भवइ) આ પ્રમાણે ક્ષુદ્રસિહ નિષ્ક્રીડિત તપની આ પ્રથમ પરિપાટી છે. છ માસ અને સાત દિવસ રાત સુધી સૂત્રોક્ત વિધિ મુજ “યાવતી તેની આરાધના હેાય છે. એટલે કે આ વ્રતને કરવામાં છ માસ અને સાત દિવસ રાત એટલે qमत साणे छ मही “सर्व कामगुणित " ने पारणांना विशेषण ३२ भू शा० ३४ For Private And Personal Use Only
SR No.020353
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages845
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy