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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शाताधर्मकथाङ्गसूत्र उपगत्य तदाज्ञामङ्गीकृत्य विहां जनपदविहारं कर्तुमित्यार्थ । एवं अमुना प्रकारेण संप्रेक्षन्ते, परस्परं पर्यालोचन्ति, संप्रेक्ष्य पर्यालोच्य शैलक 'रायं' राजानं राजर्षिमित्यर्थः उपसंपद्य-उपेत्य तदाज्ञामादाय विहरन्तिः ।। ३४ ॥ मूलम्-तएणं सेलए पंथगपामोक्खा पंच अणगारसया बहुणि वासाणिसामन्नपरियागं पाउणित्ता जेणेव पोंडरीये पवए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता जहेव थावच्चापुत्ते तहेव सिद्धा । एवामेव समणाउसो जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा जाव विहरिस्सइ। एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपतेणं पंचमस्स णायज्झयणस्स अयमढे पण्णत्तेत्ति बेमि ॥३५॥ ॥ पंचमं णायज्झयणं समत्तं ॥ पहिले कर दी गई है । (तं सेयं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं सेलयं उव संपज्जित्ता णं विहरित्तए ) इसलिये हे देवानुप्रियो ! अब हम लोगों को यही उचित-कल्याण कारक-मार्ग है कि हम सब उन शैलक राजऋषि की आज्ञा को अंगीकार कर बाहर जनपदों में विहार करें। ( एवं संपेहेंतिं ) इस प्रकार उन्होंने विचार किया-(संपेहित्ता सेलयं रायं उपसंपजित्ताणं विहरंति ) विचार कर वे सब के सब शैलक राजा-राजऋषि के पास पहुंचे और उनकी आज्ञा लेकर विहार करने लगे । सूत्र ॥ ३४ ॥ व्यन्या पडता ४२पामा मावी. छ. ( त सेयं खलु देवाणुपिया ! अम्ह सेलयं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए) मेथी 3 पानुप्रिया! अभा। माटे और હિતાવહ છે કે અમે બધા તે શૈલક રાજઋષિની આજ્ઞા મેળવીને બહાર ના જનપદેમાં વિહાર માટે નીકળીએ (एवं संपेहेंति) मा प्रभऐ पिया२ -- ( संपेहित्ता सेलय रायं उपसंपजित्ताणं विहरति ) पिया२ शन ते १५॥ शै१४ २१/*पिनी पासे गया. અને તેમની આજ્ઞા મેળવીને વિહાર કરવા લાગ્યા. આ સૂત્ર “૩૪” For Private And Personal Use Only
SR No.020353
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages845
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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