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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org अमगार धर्मामृतवर्षिणी टीका अ० ५ शैलकराजक षिचरितनिरूपणम् गाराः शिष्यरूपेण सहचरा आसन् वेषु पान्थक शैलकानमारसेवायें स्थापयित्वा पान्थकवर्जास्ते सर्वेऽनगाराः पीठफलकादिक प्रत्यये बहिर्जनपदविहारं कुर्वन्ति स्मेत्यर्थः ॥ ३१ ॥ X Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मूलम् - तणं से पंथए सेलक्स्स सेज्जासंथास्य उत्तचारपासवणखेल सिंघाणमल्लओस हमे सज्जभत्तपाणणं अगिल्लाए विणणं वेयावडियं करेइ, तरणं से सेलए अन्नया कयाई कत्तिय चाउम्मासियंसि विउलं असण० आहारमाहारिए सुबहुं मज्जपाणयं पीए पुव्वावरण्हकालसमयंसि सुहृष्वसुत्ते, तएणं से पन्थए कत्तियचाउम्मासिसि, कयकाउस्सग्गे देवसिय पंडि कमणं पडिक्कते चाउम्मासियं पडिक्कंनिउंकामे सेलयं रायरिसिं खामणट्टयाए सीसेणं पाएस संघट्टेइ, तएण से सेलए प्रथएणं सीसेणं पापसु संघट्टिए समाणे आसुरुते जाव मिसिमिसेमाणे उइ, उहित्ता एवं वयासी-स केस णं भो एस अप्पत्थियपस्थिए जाव परिवज्जिए जेणं ममं सुहष्पसुत्तं पाएंसु संघट्टेइ ? तरणं से पंथ सेलणं एवं वृत्ते समाणे भीए तत्थे तसिय करयल क ठावित्ता बहिया जाव विहरति ) इस प्रकार उन्होंने विचार कियाविचार करके प्रातःकाल जब सूर्य अपनी प्रभा से प्रकाशित होने लगा तब उन्होंने शैलक राजऋषि से पूछकर प्रतिहारिक प्रत्यर्पणी पीठ फलग शय्या संस्तारक को वापिस दे दिया वापिस देकर फिर उन्हों ने उन की वैयावृत्ति करने के लिये पथक अनगार को रख दिया । रखकर फिर वे वहां से बाहर दूसरे देशों में विहार कर गये । सूत्र ।। ३१ ।। For Private And Personal Use Only STAR ठाविता बहिया जाव विहरति ) या प्रमाणे ते विचार इयो, विचार કરીને જ્યારે સવારે સૂર્ય ઉદય પામ્યા ત્યારે શૈલક રાજઋષિની અજ્ઞામેળવીને --પ્રત્યપણીય એટલે કે પીક્લક શય્યા સસ્તારકને પાછા સાંપીને રાજઋષિની : वैयावृत्ति भाटे अनगारने त्यां नियुक्त उरीने तेथे त्यांथी मारना ખીજા દેશેામાં વિહાર કરવા નીકળ્યા. ।। સૂત્ર ૩૧ ॥ ज्ञा २०
SR No.020353
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages845
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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