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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अ० ५ स्थापत्यापुत्रनिर्वाणनिरूपणम् ११७ निवायं ' देवसंनिपातं निर्वाणाधुत्सवसमये यत्र देवाः समागत्य मिलन्ति, देवा नां संनिपातः संमिलनं यत्र तं 'पुढविसिलापट्टयं' पृथिवी शिलापट्टकं प्रतिलेखयित्वा यावत् 'पाओवगमणं णुवन्ने' पादपोपगमनमनुमाप्तः सहस्र शिष्यै सह पादपोपगमनसंस्तारकं कृतवान्.। ततःखलु स स्थापत्यापुत्रो बहूनिवर्षाणि सामान परियागं ' श्रामण्यपर्यायं चारित्रपर्यायं पाउणित्ता 'पालयित्वा मासिक्या संलेखनया पष्ठिभक्तानि अनशनेन छित्त्वा यावत् - केवलवरज्ञानदर्शने सति 'समुप्पाडेता' समुत्पाद्य अन्तसमये केवलज्ञानां केवलदर्शनं च संपाप्य ततः पश्चात् सकलकर्मक्षये सिद्धः मुक्ति प्राप्तः यावत् बुद्धो मुक्तः सर्वदुःख प्रहीणः जन्मजरामरणादिदुःखरहितो जातः ॥ २६ ॥ गमणं णुबन्ने) चढकर उन्हों ने मेघ समूह के समान कृष्ण वर्णवाले तथा निर्वाण आदि के उत्सव के समय जहां देव एकत्रित होते हैं ऐसे पृथिवी शिलापटक पर प्रतिलेखना कर यावत् पादपोपगमन संथारा धारण कर लिया। साथ के उन १ हजार साधुओं ने भी पादपोपगमन संथारा ले लिया। (तएणं से थावच्चापुत्ते बहुणि वासाणि सामन्न परि यागं पाउणित्ता मासियाए संदेहणाए सद्धि भत्ताई अणसणाए छेदित्ता जाव केवलवरनाणदंसणं समुप्पाडेता तओ पच्छा सिद्धे जाव पहीणे ) इस तरह उन स्थपत्यापुत्र अनगार ने अनेक वर्षों तक श्रामण्य पर्याय का पालन करके एक मास की संलेखना से साठ भक्तों का अनशन द्वारा छेदन कर यावत् अन्त समय में केवल ज्ञान केवल दर्शन प्राप्त कर लिया। उन्हें प्राप्त कर फिर वे सकल कर्मों के क्षय होने पर सिद्ध बन गये। यहां यावत् शब्द से बुद्ध मुक्त सर्व दुःख प्रहीण जन्मजरा मरणादि दुःख रहितो जोता " इन पदों का संग्रह हुआ है ।सू०२६॥ મેઘ સમૂડ જેવી કાળી તેમજ નિર્વાણુ વગેરેના ઉત્સવના વખતે દેવે જ્યાં એકઠા થાય છે એવી શિલાપર પ્રતિલેખના કરીને પાદપપગમન સંથારો સ્વીકાર્યો. તેમની साथे से इतर साधुमासे ५५ (तएण से थावच्चापुत्ते बहूणि वासाणि सामन्नप. रियोग पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए सर्द्वि भत्ताई अणसण!ए छेदित्ता जाव केवलवर नाणदंसण समुप्पाडेता तओपन्छा सिद्धे जोव पहीणे ) मा शते स्थापत्याचा અનગારે ઘણાં વર્ષો સુધી શ્રાવણ્ય પર્યાયનું પાલન કરીને એક મહિનાની સલેખનાથી સાઈઠ ભક્તોનું અનશન વડે છેદન કરીને છેવટે કેવળ જ્ઞાન કેવળ દર્શન મેળવ્યું. ત્યાર બાદ બધાં કર્મો ક્ષય થયાં ત્યારે તેમને સિદ્ધ પદ મળ્યું २ यावत' श६ माव्य। छ तेथी ( वुद्धः मुकः सर्वदुःख नहीणः जन्म जरामरणादिदुःखरहितो जातः) मा ५होने। सन थय। छे ॥ सू.२६ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020353
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages845
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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