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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे मूलम्-तएणं से थावच्चापुत्ते अणगारसहस्सेणं सद्धिं संपरिवुडे जेणेव पुंडरीए पव्वए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पुंडरीयं पव्वयं सणियं २ दुरूहइ, दुरूहित्ता मेघघणसंनिगासं देवसन्निवायं पुढविसिलापट्टयं जाव पाओवगमणं णुवन्ने, तएणं से थावच्चापुत्ते बहुणि वासाणि सामन्नपरियागं पाउ. णित्ता मासियाए संलेहणाए सढि भत्ताई अणसणाई छेदित्ता जाव केवलवरनाणदंसणसमुप्पाडेता तओ पच्छा सिद्ध जाव पहीणे ॥ सू० २७ ॥ . टीका -'तएणं से' इत्यादि । ततस्तदनन्तरं खलु स स्थापत्यापुत्रोऽनगारहोग सार्ध संपरितृतो ग्रामानुग्रामं विहरन् यत्रैव पुण्डरीकः पुण्डरीकनामकः पर्वतस्त त्रैवोपागच्छति, उपागत्य च पुण्डरीकं पर्वतं शनैः शनै रोहति-आरोहति, दूरूह्य ' मेघघगसंनिगासं' भेघघनसंनिकाशं मेघानां घनः समूहस्तद्वत् कालवर्ण 'देवस तएणं से थावच्चा पुत्ते इत्यादि । - टीकार्थ-(तएणं ) ईसके बाद ( से थावच्चापुत्ते ) ये स्थापत्यापुत्र अणगार सहस्सेणे सद्धिं संपरिखुडे ) हजार अनगार के साथ ग्रामानु ग्रामविहार करते हुए ( जेणेव पुंडरीए पव्वर ) जदां पुंडरीक पर्वत था(तेणेव उवागच्छइ ) वहां आये (उवागच्छित्ता पुंडरीयं पव्वयं सणियं २ दुरूहइ) वहां आकर वे उस पुंडरीक पर्वत पर धीरे २ चढे ( दुरूहित्ता मेघघणसंनिगासं देवसंनिवार्य पुढविसिलापट्टयं जाव पाओव 'तपण से थावच्चापुत्ते !' त्याहि ॥ टीर्थ-(तएण) त्या२५॥४( से थावच्चापुत्ते) स्थापत्यापुत्र (अणगारसहस्सेण सद्धि सपरिवुडे ) मे १२ अगा२नी साथ मे ॥मयी भार म वि.२ ४२di (जेणेव पुंडरीए पव्वए) न्यi N४ ५'त तो (तेणेव उवागच्छइ) त्यो माया ( उवागच्छित्ता पुंडरीय पपय सणिय २ दुरूहइ ) त्यां पायान मा ७६ ५५२ धीमे धीमे या भांडया. ( दुरूहित्ता मेघघणसंनिगास देवसंनिवाय पुढविसिलापट्टयौं जाव पाओवगमण णुवन्ने ) यढीने तेभरे For Private And Personal Use Only
SR No.020353
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages845
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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