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अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अं० ५ सुदर्शनश्रेष्ठोवर्णनम्
ततः खलु स सुदर्शनस्तं शुकमेजमानम् आगच्छन्तं पश्यति, दृष्ट्वा 'नो अब्भुइ' नो अभ्युत्तिष्ठति, अभ्युत्थानं न करोतिस्म 'नो पच्चुग्गच्छद्द ' नो प्रत्युद्गच्छति अभिमुखं न गच्छति, 'नो आढाइ ' नो अद्रियते आदरं न कुरुते 'नो परियाणा ' नो परिजानाति = आगमनं नानुमोदयति नो वन्दते न स्तौति, तुसिणीए संचिgs ' तूष्णीकः संतिष्ठति ।
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ततः खलु स शुकः परिव्राजकः सुदर्शनमनभ्युत्थितं दृष्ट्वा एवमवादीत्-त्वं खलु सुदर्शन ! अन्यदा अन्यस्मिन् समये मामेजमानं दृष्ट्वा अभ्युत्तिष्ठसि यावद्नयरीए मझं मज्झे णं जेणेव सुदंसणस्स गिहे जेणेव सुदंसणे तेणेव उवागच्छइ ) बाहर निकल कर सौगंधिका नगरी के ठीक बीचों बीच से होकर जहां सुदर्शन का घर और उसमें भी जहां सुदर्शन था वहां गया (तएण से सुदंसणे तं सुयं एजमाणं पासइ ) सुदर्शन ने आते हुए परिव्राजक को देखा (पासिता नो अब्भुट्ठेइ, नो पच्चुग्गच्छह, णो आढाइ णो परियाणाइ नो बंदर, तुसिणीए संचि ) परन्तु देखकर वह उठा नही उसके सामने नहीं गया, उसका आदर नहीं किया, उस के आगमन की उसने सराहना नहीं की । स्तुति भी नहीं की केवल चुपचाप बैठा रहा। ( तए णं से सुए परिव्वायए सुदंसणं अणभुट्टियं • पासिता एवं वयासी) जब शुक ने ऐसा देखा अर्थात् सुदर्शन को नहीं उठा हुआ, सामने नहीं आया हुआ, आदि रूप से देखा तो देखकर उसने उससे इस प्रकार कहा- तुमं णं सुदंसणा ! अन्नया ममं एज्जमाणं पासित्ता अन्भुट्ठेसि जाव वंदसि इयाणि सुदंसणा ! तुमं ममं
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जेणेव सुदंसणरस गिहे जेणेव सुदंसणे तेणेव उवागच्छइ ) महार नीडजीने સૌગધિકા નગરીની ખરાબર વચ્ચે થઇને જ્યાં સુદર્શનનું ઘર અને તેમાં પણુ न्यां सुदृर्शन हतो त्यां गये. (तएण से सुदंसणे तं सुयं एज्जमाणं पासइ ) सुदर्शने । परिवाउने भावता लेया ( पासित्ता नो अब्भुट्ठेइ, नो पच्चु. गच्छइ, णो आढाइ, णो परियाणाइ, नो बंदर, तुसिणीए संचिट्ठइ) परतु ले ને તે ઉભા થયા નહિ, સ્વાગત માટે તેની સામે ગયા નહિ, તેને આદર આ નહિ, તેના આગમનની તેમણે સરાહના કરી નહિ, તેની સ્તુતિ પણ ऐरी नहि इश्त तेथे सुपथाय पोतानी नभ्यासे मेसी ४ २ह्या. ( तरणं से सुए परिव्वायए सुदंसणं अणन्भुट्ठियं० पासिता एवं वयासी ) शु परित्रान} शेडने सत्ार भाटे पोतानी सांभे नहीं भवतां लेने सुदंसणा ! अन्नया मम एज्जनाणं पासित्ता अब्भुट्ठे
ह्यं - (तुमं णं
जाव वदसि इयाणि
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