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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org ७४ ज्ञाताधर्मकथासूत्रे व्रतेऽन्तर्भावात् चाउज्जामो धम्मो इति वचनात् चत्वारि अणुव्रतानि चत्वारि महाव्रतानि आसन् इति विशेषः । तत्र खलु यः सोऽनगारविनयः स खलु पञ्च महाव्रतानि तद्यथा - सर्वस्मात् प्राणातिपाताद् विरमणं, सर्वस्माद् मृषावादाद् विरमणं२, सर्वस्माद् अदत्तादानाद् विरमण३, सर्वस्मात् परिग्रहाद् विरमणं । सर्वस्माद् रात्रिभोजनाद् विरमणं, यावन्मिथ्यादर्शनल्याद् विरमणं, दशविधं प्रत्याख्यानं द्वादशभिक्षुप्रतिमाः इत्येतेन द्विविधेन, विनयमूलकेन धर्मेण 'अणुपुब्वेणं' अनुपूर्व्येण क्रमेण ' अडकम्मपगडीओ ' अष्टकर्मप्रकतीः ज्ञानावरणीयाद्यष्टकर्म प्रकृतीः ' खवेत्ता ' क्षपयित्वा ' लोयग्गपट्टाणा ' लोकाग्रप्रतिपांचवें परिग्रहविरमणव्रत में अन्तर्भाव होने से 'चाउज्जामो धम्मो ' इस वचन से चार अणुव्रत और चार महाव्रत कहे गये हैं । (तत्थ णं जे से अणगारविणए से णं चत्तारि महव्वयाई तं जहा ) इसी तरह जो अनगार विनय है वह चार महाव्रत रूप है जैसे (सव्वाओ पाणावायाओ वेरमणं सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं सव्वाओ अदिनादाणाओ वेरमणं, सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमणं, सव्वाओ भोयणाओ वेरमणं जाव मिच्छादंसणसल्लाओ वेरमणं) समस्त प्राणातिपात से विरमण, समस्त मृषावाद से विरमण समस्त अदत्तादान से विरमण, समस्त परिग्रह से विरमण होना इन चार प्रकार के महाव्रतरूप तथा समस्त रात्रि भोजन से विरमण यावत् मिथ्यादर्शन शल्य से विरमण होना इन रूप तथा ( दसविहे पच्चक्खाणे वारस भिक्खुपडिमाओ दस विध प्रत्याख्यान रूप और १२ बारह भिक्षु प्रतिमा रूप है ( इच्चेएर्ण दुविहेणं विषयमूलएणं धम्मेणं अणुपुब्वेणं अट्ठ कम्मपगडीओ खवेत्ता " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पांथमां परिश्रड विश्भ व्रतमां अन्तलव होवाथी " चाउज्जाभो धम्मो " मे वयनथी यार आलुव्रत भने थारमहाव्रत उडयां छे. (तत्थ णं जे से अणगार विre से णं चत्तारिमहव्वयाई त जहा ) मा रीते मनगार विनय पशु यार महावत ३५ छे. भेभडे (सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं सव्त्राओ मुखावायाओ वेरमणं सव्वाओ अदिन्नदाणाओ वेरमणं सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमणं सव्वाओ राइ भोयणाओ वेरमणं जाव मिच्छाद सणपल्लाओ वेरमणं) सहज प्राशातिपातथी विरમવું સકળ સૃષાવાદ (અસત્યભાષણુ) થી વિરમવું, સકળ અદત્તાદાનથી વિરમવું, અને સકળ પરિગ્રહાથી વિરમવું આ ચાર જાતના મહાવ્રત રૂપ છે. રાત્રિ लोभनथी विरभवु यावत् मिथ्यादृर्शन शस्यथी विरमित थवु, (दर्सविहे पच्चक्खाणे बारसभिक्खुपडिमाओ ) दशविध अत्याध्याय भने बार प्रतिभाइय छे. ( इच्चेपणं दुविणं विजयभूलणं धम्मेणं अणुपुव्वेणं अट्ठकम्मपगडीओ खवेत्ता For Private And Personal Use Only
SR No.020353
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages845
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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