________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
बहु मन्यते । यत्र च नात्मा वर्ण्यते, परश्च न दृष्यते । यत्र च यः सगुणः स वर्ण्यते विगुणश्चापेक्ष्यते । यत्र च वस्तुविचारणे न कुतोऽपि भयमुत्पद्यते । यत्र च जिनवचनोत्तीर्ण प्राणापहारेऽपि न प्रजल्पते तथा यत्र-(उपदेशरसायनरासे गा० २७-२९)
"सावयविहिधम्मह अहिगारिअ, जिज न हुंति दीहसंसारिअ । अविहि करिति न सुहगुरुवारिअ, जिणसंबंधिय-धरहि न दारिअ ॥२७॥ जइ किर फुल्लइ लब्भइ मोल्लिण, तो वाडिय न करहि सहु कूविण । थावर घर-हट्टइ न करावहि, जिणधणु संगहुकरि न वधारहिं
॥ २८॥ जइ किर कु वि मरंतु घर-हट्टइ, देइ त लिजहिं लहणावइ । अह कुवि भत्तिर्हि देह त लिजहि, तब्भाडयधणि जिण पूइजहि ॥२९॥" इत्यादिको विधिः । तथा पण्याङ्गनाननविषये च-(उपदेशरसायनरासे गा०...३२३४)"...जा लहुडी सा नच्चाविज्जइ, बड्डी सुगुरुवयणि आणिज्जइ
॥३२॥ जोवणत्थ जा नच्चइ दारी, सा लग्गइ सावयह वियारी। तिहि निमित्तु सावयसुय फट्टिहि, जंतिहिं दिवसिहि धम्मह फिट्टहिं ॥ ३३ ॥ बहुअ लोय रायंध स पिच्छहिं, जिणमुह-पंकउ विरला बंछहिं । जणु जिणभवणि सुहत्थु जु आयउ, मरइ सु तिक्खकडक्खिहि घायउ
SHRSONAGACASSAGE
For Private and Personal Use Only