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गणधरसा
र्द्धशतकम्
॥ ३० ॥
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सपरेसिं हि सुरसुंदरीकहा जेण परिकहिया जिनचन्द्रः - कुमुयं वियासमाणो, विहडाविअकुमअचक्कवायगणो । उदयमिओ जस्सीसो, जयम्मि चंदु व जिणचंदो संवेगरंगसाला, विसालसालोवमा कया जेण । रागाइवेरिभय भी भवजण रक्खणनिमित्तं अभयदेवः- कयसिवसुहत्थिसेवो, - ऽभयदेवोऽवगयसमयपक्खेवो । जस्सीसो विहिनवंगवित्तिजलधोयजललेवो
जेण नवगविवरणं, विहिअं विहिणा समं सिवसिरीए । काउं नवगविवरण, -मुज्झिअ भवजुवइसंजोगं
जिनेश्वरसूरिः- जेहिं बहुसीसेहिं सिवपुरपहपत्थिआण भव्वाणं । सरलो सरणी समगं, कहिओ ते जेण जंति तयं
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श्रीजिनेश्वरसूरि
स्तुतिः ॥
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