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अणहिल्लवाडए नाडए व दंसिअसुपत्तसंदोहे। पउरपए बहुकविदृसए य सन्नायगाणुगए सड्डिअदुल्लहराए, सरसइअंकोवसोहिए सुहए । मज्झे रायसइं पविसिऊण लोयागमाणुमयं नामायरिएहि समं, करिअ वियारं वियाररहिएहिं । वसइहिं निवासो साहूण ठाविओ ठाविओ अप्पा
परिहरिअगुरुकमागय,-वरवत्ताए वि गुजरत्ताए। बुद्धिसागरसूरिः-वसहि विहारो (निवासो) जेहिं, कुडीकओ गुजरत्ताए।
तिजयगयजीवबंधू , जब्बंधू बुद्धिसागरो सूरी।
कयवायरणो वि न जो, विवायरणकारओ जाओ जिनभद्रः-सुगुणजनजणियभद्दो, जिणभद्दो जविणेयगणपढमो।
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॥ ६७॥
॥६८॥
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॥ ६९ ॥
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