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श्राचायस्वरूपनिरूपण यदि गुरु किप्ती सनय प्रमाद के वशीभूत हो जाए और गच्छ के नियमोपनियमरूप समाचारी का यथाविधि पालन न करे तब वह शिष्य जो अपने गुरु को सावधान नहीं करता बह भी अपने गुरु का शत्रु माना जाता है ।।
उपरोक्त अवस्था में शिष्य अपने गुरु को किन शब्दों में सावधान करे अब इस विषय का वर्णन करते हैं - तुम्हा रसादि मुणिवर !, पमायवमगा हवंति जइ पुरिमा । तेणऽनो को अहं १ , आलम्बन हुज संसारे।।६।।
हे मुनित्रों में प्रधान ! गुरुदेव !! यदि आप जैसे समर्थ महापुरुष भी प्रमाद के वशीभूत हो जाएंगे, तो आप को छोड़ कर हमें इस संसार में किस का सहारा रहेगा ? __ आ पुनः गाणी के विषय में वर्णन करते हैंनाणंमि दंसणम्मि अ, चरणमि य तिसुवि समयमारेसु । चोएइ जा ठवे. गणमप्पाण च सा अ गणी ॥ २० ।।
जिनवाणी का सार ज्ञान, दर्शन और चरित्र है जो अपनी आत्मा को तथा समस्त गण को इन तीनों गुणों में स्थापन करने के लिये प्रेरणा करता रहता है वही वास्तव में गच्छ के खामी आचार्य महाराज है। युष्मादृशा आपे मुनिवर :, प्रनाइवरागा भवन्ति यदि पुरुषाः । तेनाऽन्यः कोऽस्माकमा-लम्बनं भविष्यात संसारे ? ।। १६ ।। ज्ञाने दर्शने चरणे च, त्रिवपि समयसारंपु । नोदयति यः स्थापयितुं, गणमात्मानं च स च गणी ।। २८ ।। १. 'तो को अन्नो अम्ह' इात पाठान्तरम्
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