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लोकमें नाम प्रसिद्धहुआ ॥ ऐसा जानके अहो भन्यो भवभयको दूरकरनेकेलिये पंचमीके आराधनकरने में उद्यम
करना ॥ इतने कहनेका कार्तिक शुक्लपंचमीके माहात्म्यमें वरदत्तगुणमंजरीका कथानक कहा ॥ इति ज्ञानपंचमी द ब्याख्यान सम्पूर्ण ॥
अब कार्तिक पूर्णिमाका व्याख्यान लिखतेहैं ॥ 2 श्रीसिद्धाचल तीर्थेशं, नत्वा श्रीऋषभं प्रभुम् । कार्तिकपूर्णिमायाश्च, व्याख्यानं वक्ष्यते मया॥१॥
सिद्धोविजायर चक्कीनमिविनमिमुनि पुंडरीओमुणीदो।बालीपजुन्न संबोभरहसुकमुनि सेलगोपंथगोय।। हरामोकोडीपंच द्रविड नरवई नारओ पण्डुपुत्ता।मुत्ताएवं अणेगे विमलगिरिमहं तित्थमेयं नमामि ॥२॥ | श्रीसिद्धाचल तीर्थकेखामी श्रीऋषभदेवप्रभुको नमस्कार करके कार्तिकपौर्णिमाका व्याख्यान कहताहूं ॥१॥
अहो भन्यो पापरूपकर्मका हरनेवाला श्रीविमलाचलतीर्थको मन वचन कायाकरके नमस्कारकरताहूं ॥ कैसाहै है ४/विमलाचलतीर्थ कि जिसतीर्थपर विद्याधरचक्री नमिबिनमिराजा पुण्डरीकगणधर, वालीऋषिः प्रद्युम्नः,
साम्बकुमारऋषिः भरतराजा शुकमुनिः सैलकराजर्षिः पंथकमुनिः रामचंद्र द्राविड वारिखिल्ल दशकरोड मुनियोंके 5 बाबा साथ, नवनारद, पांडव वगैरहः बहत मुनि अनशनकरके आठकर्मरूप शत्रुओंका विनाशकरके मोक्षगये ॥ ऐसा सिद्ध
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