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दीवा० चारित्रग्रहणकिया ॥ बाद वरदत्तराजऋषिः और गुणमंजरीसाध्वी चारित्रपालके कालकरके वैजयन्तविमानमें ज्ञानपंचमी व्याख्या०पददेव भये ॥ वहांसे च्यवके वरदत्तका जीव महाविदेहक्षेत्रमें पुंडरीकनी नगरीमें अमरसेनराजा गुणवतीरानीके पुत्र व्याख्यान.
हुआ ॥ शुभदिनमें सूरसेन नामकिया॥ क्रमसे यौवन अवस्थापाया सौ (१००) कन्याओंका पाणिग्रहण किया। ॥५४॥
पिताने राज्यदिया शूरसेनराजा हुआ नीतिःसे राज्य पालता हुआ॥ एकदा श्रीसीमन्धरस्वामी बिहार करतेहुए वहाँ दू समवसरे तीर्थंकरका आगमन सुनके शूरसेनराजा बांदनेको आया ॥ भगवान्ने धर्मदेशना प्रारंभ करी ॥ सौभाग्य 3 है पंचमीके तपका फल कहा बाद राजाने पूछा हेभगवन् किसने यह तपकिया और फलपाया तब भगवान्ने वर
दत्त राजा और गुणमंजरीका दृष्टांत कहा ये सुनके जातिःस्मरण पाया पूर्वभव देखा पंचमीका तप ग्रहण किया ॥ दशहजार (१००००) वर्ष राज्यपालके तीर्थकरके पास दीक्षालेके १ हजार वर्षतक (१०००) चारित्र है पालके केवलज्ञान पाके मोक्षगया ॥ गुणमंजरीका जीव सुखभोगवके देवलोकसे च्यवके रमणीक नामके विजयशु
भानगरी अमरसिंह राजाकी अमरवतीरानीकी कुक्षिमें पुत्र उत्पन्नहुआ समयमें जन्महुआ पिताने सुग्रीवनाम दिया है क्रमसे यौवनअवस्था पाई बहुतसीकन्याओंका पाणिग्रहणकिया। वीसवें वर्ष में पिताने राज्यदिया और दीक्षा लीया ॥ ५४॥ सुग्रीवराजा बहुतवर्षतक राज्यपालके गुरूके पास दीक्षालेके ॥ एकलाखपूर्ववर्ष चारित्र पालके केवलज्ञानपायके मोक्षगया ॥ पंचमीके आराधनसे अधिक सौभाग्य मनुष्योंके होवेहै । इस कारणसे पंचमीका सौभाग्यपंचमी ऐसा
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