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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दीचा. व्याख्या ॥ ५५॥ पूर्वलाखा क्रमसे भरतवाज्यपाल शैलातीर्थको नमस्कारहो ॥ और जिसतीर्थमें कार्तिकपौर्णिमाके दिन यात्राकरे सो बहुतफलपावे ॥ शत्रुजयगिरिके ही कार्तिक सामनेजाकर चैत्यवंदनकरनेमें बहुतधर्मवृद्धि होवेहै ॥ और कार्तिकपौर्णिमाके दिन सिद्धाचलके ऊपर दशकरोड़ पौर्णिमा मुनियोंकेसाथ द्राविड वारिखिल मोक्षगये हैं उन्होंका दृष्टांत कहतेहैं । इस जम्बूद्वीपमें दक्षिणभरतार्धके मध्यखंडमें व्याख्यान. * इक्ष्वाकुभूमिमें इस अवसर्पिणीमें तिजे आरेके अंतमें सातवां कुलगर नाभिनामका हुआमरूदेवानामकी स्त्री थी उन स्त्रीके ४ उदर कन्दरामें श्रीऋषभदेव पहलातीर्थकर उत्पन्नहुआ वह छै पूर्वलाखवर्ष कुमरपदमें रहे बाद इन्द्रने सुनन्दा सुमंगलाट दादो कन्या पाणिग्रहणकराई। स्वामीने संसारका व्यवहार प्रवाया ॥ क्रमसे भरतबाहूबलिः प्रमुख सो (१००) के पुत्र दो पुत्रीभयी जब २० लाख पूर्व गया तब खामी राजाभये ॥ ६३ पूर्वलाखवर्ष राज्य पालके दीक्षाका अवसर जानके भरतकों अयोध्याका राज्य देकर बाहुबलिको तक्षशिलाका का राज्य दिया ऐसे क्रमसे पुत्रों के नामका देश वसाके सौ पुत्रको राज्यदिया । उन्होमें एक द्रविड़नामका पुत्र था उसको द्रविणदेश और कंचनपुर नगर वसाके icom५५॥ ते दिया स्वामीने दीक्षालिया ॥ क्रमसे कर्मक्षय होनेसे केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। भगवान् करोड़ों देवोंके परिवारसहित साधुसाध्विओंके समुदायसहित देशोंमें विहारकरके धर्मवृद्धिकरी ॥ और द्रविडराजाभी पिताका दियाहुआ राज्यभोगवता हुआ ॥ अपनी स्त्रियोंकेसाथ विषयसुख भोगवते क्रमसे दोपुत्र हुए ॥ बड़ा पुत्र द्राविड छोटा वारिखिल्ल क्रमसे भोगसमर्थ जानके दोनोंपुत्रोंको पाणिग्रहण कराया ॥ पुत्रोंकेभी पुत्रभये वहभी चन्द्रकलाके जैसा नामका For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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