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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बाई' हुक विज्यो तदुपायोसणा चित्ता // 3 // घेसु पवती य तहा चित्ता पसाइ सरसिगा होइ / तस्संपसी पुष्पं गुरुसंजोगाइरूयं तु // 4 // तचो सुदेसणाईहिं होइ जो भावधम्मसंपत्ती / तं फलमिह विनेयं परमफलपसाहगं णियमा // 5 // पीजस्सवि संपत्ती जायइ चरमंमि चेय परिअट्टे / अञ्चंतसुंदरा में एसावि तओ ण सेसेसु // 6 // प य एमि अणंतो जुअइ णेयस्य णाम कालुसि / उस्सप्पिणी अणंता हुंति जओ एगपरिअहे // 7 // पीजाइआ य एए तहा तहा संतरेतरा णेया। बहमन्यत्तखिसा एगंवसहाव बाहाए ॥"चि // 8 // एतेन यदुच्यते केनचिद् बीजादिप्राप्तौ मार्गानुसार्या सम्यक्स्यो पलम्भं संज्ञित्वमेव न व्यभिचरतीति' तदपास्तं द्रष्टव्यम् // " संप्णीर्ष शुच्छा-गोयमा ! जहोणं अंतोमुहुत्तं, उक्ोसेणं सागरोवमसतपुडुत्तं सातिरेगे।" इत्यागमयचनात्संज्ञिकालस्योत्कर्षतः सातिरेकसागरोपप्रशतपृथक्त्यमानत्वाद, अपुनर्बन्धकपदस्थापुनर्बन्धकत्वनोत्कृष्टकस्थितिक्षपणार्थपालोचमायामप्येतदधिकसंसारावश्यकत्वाद् बीजादिप्राप्तपूर्यप्येक पुशलपरावर्तनियतानन्तोत्सर्पिण्यवसर्पिणीरूपकालमाननिर्देशात् / / का पुनधिशेयस्तदुपायान्वेषणा चित्राः // 3 // . वेषु प्रवृत्तिध तथा चित्रा.............. वरसंप्रातिः पुष्प गुरुतंयोगादिरूपं तु // 4 // शतः मुशाजादिभिर्भवति यो भावधर्मसंप्राप्तिः / सरफलभिह विक्षेयं परमफलप्रसाधकं नियमात् // 5 // बीजस्यापि संप्राप्तिर्जायते घरम एवं परावर्त / अत्यन्तसुन्दरा यदेषाऽपि न शेषेषु // 6 // म चैतस्मिम् अनन्तो युज्यते नैतस्य नाम काल इति / उत्सपिण्योऽनन्ता भवन्ति यत एकपरावर्ते // 7 // बीमादिकाश्च शेया तथा तथा सान्तरेतरा शेया। तथाभव्यत्वाक्षिप्ता एकात्तस्वभाववाघया // इति // 8 // 1 संक्षिनां प्रश्नः-गौतम! अघन्येनान्तर्मुहूर्तम् , उस्कर्षेण सागरोपमशतपयकावं साविरेकम् / / For Private and Personal Use Only
SR No.020309
Book TitleDharmpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
Publisher
Publication Year
Total Pages276
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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