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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तत्तोवि समुबट्टा पुढविजलानलसमीरममंमि / असंखोसप्पिणिसप्पिणीओ णिवसंति पत्तेयं / / 3 / / संखेज पुण कालं वसंति विगलिंदिएसु पत्तेयं / एवं पुणोपुणोवि य भमंति चवहाररासिमि // 4 // ". तल्लघुवृत्तावप्युक्तम् आदौ सूक्ष्मनिगोदे जीवस्यानन्तपुद्गलविवर्तान् / तस्मात्कालमनन्तं व्यवहारवनस्पती वासः // 1 // उत्सर्पिणीरसंख्याः प्रत्येकं भूजलाग्निपवनेषु / विकलेषु च संख्येयं कालं भूयो भ्रमणमेव // 2 // तिर्यकपश्चेन्द्रियतां कथमपि मानुष्यकं ततोऽपीह / क्षेत्रकुलारोग्यायुर्बुद्धयादि यथोत्तरं तु दुरवापम् // 3 // धर्मरत्नप्रकरणवृत्तावप्युक्तम् इभ्यस्तूप्रमनार्थ प्रययौ नत्वा गुरून समयविधिना। निषसाद यथास्थानकमथ मरिर्देशनां चक्रे // 1 // अव्यवहारिकराशौ भ्रमयित्वाऽनन्तपुद्गलविवर्तान् / व्यवहृतिराशौ कथमपि जीवोऽयं विशति तत्रापि // 2 // बादरनिगोद-पृथिवी-जल-दहन-समीरणेषु जलधीनाम् / सप्ततिकोटाकोट्यः कायस्थितिकाल उत्कृष्टः // 3 // सूक्ष्मेष्वमीषु पञ्चस्ववसर्पिण्यो ह्यसंख्यलोकसमाः। सामान्यबादरेऽङ्गुलगणनातीतांशमानास्ताः // 4 // " इत्यादि / संस्कृतनवतत्त्वसूत्रेऽप्युक्तम् निगोदा एव गदिता जिनैरव्यवहारिणः / सूक्ष्मास्तदितरे जीवास्तान्यपि व्यवहारिणः // 1 // " इति / ततोऽपि समुद्वृत्तां पृथिवी-जला-नल-समीरमध्ये / असंख्योत्सर्पिण्यवसाक्षणार्निवसन्ति प्रत्येकम् // 3 // संख्येयं पुनः कालं वसन्ति विकलेन्द्रियेषु प्रत्येकम् / एवं पुनः पुनरपि च अमम्सि म्पबहारराशौ // 4 // For Private and Personal Use Only
SR No.020309
Book TitleDharmpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
Publisher
Publication Year
Total Pages276
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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