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7365 भक्तामरस्तोत्रटीका
Bhaktāmarastotratika
Substance :. Countrymade Paper; Size : 10 in by 4, in; Foll: 7% Eighteen to Nineteen Lines in Page ; Character: Jaina Devanāgari ; Appearance: fresh; Complete.
The Bhaktāmarastotraţikā. a Commentary in Rajasthani on Bhaktamarastotra.
The Ms begins Fol ib. ॐ श्रीजिनाय नमः
प्रणम्य श्रीमहावोर' नत्वा च श्रुतदेवतां श्रीजिनेंद्रसूरीनामासाद्यादेशमुत्तमं । बाललोकप्रबोधार्थे + + हं मे ससुदर भक्तामरमहास्तवनं करिष्ये वार्तया मुदा। युग्म तिसै आदि पहिलु भक्तामरणी उत्पत्ति कहइ छइ श्रीउज्जेनी नगरी तठे भोजराजा राज्य करइ छ पोतानै राज्यकरी समग्रलोकनै सुखै पालै है हिवै ते राजारी नगरीमा है एक मयूर नामा पंडित वसै तेहनी जामाता वाणपंडित वसैति हाही जवेई पंडित विचक्षण जितकं दोयु परस्सर मत्सर धीरै जेभनी कह्यौ न सहति इक्कमिक न विणा चिटंति इक्कमिकणं रासहवसहतुरंगा जूारा पंडिया डंभा हिवें वेई पंडित अनेरे दिने परस्पर वाद करता हुव अनेरे पंडितें कह्यो अहो पंडितो तुह्म कास्मीरदेशे जावौ तिहां श्रीसरस्वती जेहन अधिक कहिस्यइतिको उत्कृष्ट विद्यावान् जानिवौ । The Ms ends Fol 7a.
देवी बहुमौल्य रत्न देई अदृश्य हुई सेठ कुशलमै धनोपार्जी घरे आयै २६मी कथाहि ४१ काब्य उद्भूत भीषणजलोदर० ए काव्य थी कंदर्प समदे हवै सर्वरोग जाय० ते प्रभावोपरिकथा उज्जेनी नगरी शेषर राजा विमला रादनी तेहनै राजहंसकुमार पुत्र छै तिका राणी परलोक गई पछै कमला पट्टराणी परण्यौ सा राणी कुमरोपरि द्वेष धरै इणथ कामांहरा पुत्रणै राज नही इ+चिंतवीकुमनै मारिवा छल जोवै एकदा राजा कटकलेई दिगविजय करिनै गया। तिसै राणी सातरोग उपजैति की औषध दीधो कुमरणे वोमऊपनामि त्रीइनु नतजांनी कुमरणो कली हस्तनागपुर गयौ । DATE OF THE MS
सं १८४८ आसु सुदि १
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