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[ 108 ] The Kalpasūtravārttika, a Commentary of the Kalpasūtra in Rajasthani. The Ms begins Fol ib.
ॐ श्रीवर्द्धमानं जिनं नत्वा तीर्थेशं ज्ञानभास्कर।
वात्तिकं कल्पसूत्र लिख्यते कंचन मया ॥ अर्हत् भगव + + तू श्रीमहावीर देव तणइ शासने अतुलमांगलिक्य + प्रकाशने श्रीजिनशासने जेष्ठ पर्वपर्युषणपर्वनेह तणइ समागमणि श्रीकल्पसूतसिद्धांतवाचनाधिकारइ तिहां एतला अधिकार वाच्य कइ । The Ms ends Fol 11 8a.
___वीनी परिषदामध्यवर्ती थका पिणि एत क्रांतइ नही यथोक्तमाग्गइ कहइ एवं भासइ । वचन श्रोगइ क + भाषइ एवं पनवइ इम प्रज्ञापइ अनुपालइ तेहनइ कलजणावइ एवं परूवेइ श्रादर्शउलनी परइ इस भ + ण हारनइ हृदय सं + + वइ पन्जोसवणा कप्पोनाममायण सपट सहेउं सकारणं + सत्तं सत्यं सउभयं स + + गरणं भुजो २ उवदंसे इत्ति वेमि DATE OF THE MS
संवत् १६६२ वर्षे कार्तिकसुदि १२ रविवासुरे दिने षटिका पुस्तिका रामा परहस्तगतागतं ागतादेवसंजोगे COLOPHON.
पर्युषणाकल्प समाप्त परिपूर्ण हयउ । दसासुयस्कंधस्स अट्ठमं अज्झयणं सम्मत्त दशाश्रुतस्कंध श्रोभद्रबाहुखामिन विरचित तेहनु अाठमु अध्ययन संपूर्ण हयउं ए? वाचनां प्रमादइ कर। रसभपनइ करी अथवा अजाणपणइ करी सूत्र अर्थ उभयणु कुडउ कनउ हुतइ ते संघ प्रत्यक्षमिच्छामि दुक संघइ पिणि विकथा निद्रा प्रमादस भलिता कोधउ हुवइ तेमि इच्छामि दुक्कडदेवठ इति श्रीकल्पसूत्र समाप्त।
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10514 कल्पसूत्र बालाबोध Kalpasatra Balabodha
Substance : Countrymade Paper ; Size: 10 in by 41 in ; Foll: 115 (foll 107-110 are missing); Character: Jaina Devanāgari ; Appearance: Not fresh Incomplete ; Illustrated.
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