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________________ Shri Ma Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीदशवैकालिकं श्रीहारि० वृत्तियुतम् ।। १७६ ।। www.kobatirth.org इति वचनात्, शिक्षा च कलासु कामाङ्गं वैदग्ध्यात्, उक्तं च-कलानां ग्रहणादेव, सौभाग्यमुपजायते। देशकालौ त्वपेक्ष्यासां, प्रयोगः संभवेन्न वा ॥ १ ॥ अन्ये त्वत्राचलमूलदेवौ देवदत्तां प्रतीत्येक्षुयाचनायां प्रभूतासंस्कृतस्तोकसंस्कृतप्रदानद्वारेणोदाहरणमभिदधति, दृष्टमधिकृत्य कामकथा यथा नारदेन रुक्मिणीरूपं दृष्ट्वा वासुदेवे कृता, श्रुतं त्वधिकृत्य यथा पद्मनाभेन राज्ञा नारदाद्रौपदीरूपमाकर्ण्य पूर्वसंस्तुतदेवेभ्यः कथिता, अनुभूतं चाधिकृत्य कामकथा यथा- तरङ्गवत्या निजानुभवकथने, संस्तवश्च- कामकथापरिचय: 'कारणानी' ति कामसूत्रपाठात्, अन्ये त्वभिदधति सइदंसणाउ पेम्मं पेमाउ रई रईय विस्संभो । विस्संभाओ पणओ पञ्चविहं वड्डए पेम्मं ॥ १ ॥ इति गाथार्थः । उक्ता कामकथा, धर्मकथामाह नि०- धम्मका बोद्धव्वा चउव्विहा धीरपुरिसपन्नत्ता। अक्खेवणि विक्खेवणि संवेगे चेव निव्वेए ।। १९३ ।। नि०- आयारे ववहारे पन्नती चेव दिट्ठीवाए य। एसा चडव्विहा खलु कहा उ अक्खेवणी होड़ ।। १९४ ।। नि०- विज्जा चरणं च तवो पुरिसक्कारो य समिइगुत्तीओ। उवइस्सड़ खलु जहियं कहाड़ अक्खेवणीइ रसो ।। १९५ ।। नि०- कहिऊण ससमयं तो कहेइ परसमयमह विवच्चासा मिच्छासम्मावाए एमेव हवंति दो भेया ।। १९६ ।। नि०- जा ससमयवज्जा खलु होइ कहा लोगवेयसंजुत्ता। परसमयाणं च कहा एसा विक्खेवणी नाम ।। १९७ ।। नि०- जा ससमएण पुव्विं अक्खाया तं छुभेज परसमए। परसासणवक्खेवा परस्स समयं परिकहेइ ।। १९८ ।। नि०- आयपरसरीरगया इहलोए चेव तहय परलोए। एसा चउव्विहा खलु कहा उ संवेयणी होइ ।। ९९९ ।। नि०- वीरियविव्वणिड्डी नाणचरणदंसणाण तह इड्डी । उवइस्सड़ खलु जहियं कहाइ संवेयणीइ रसो । २०० ।। नि०- पावाणं कम्माणं असुभविवागो कहिज्जए जत्थ । इह य परत्थ य लोए कहा उ णिव्वेयणी नाम ।। २०१ ।। For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तृतीयमध्ययनं क्षुल्लिकाचारकथा, निर्युक्तिः १९३-२०५ कथानिक्षेपे आक्षेपण्यादि चतुर्विधधर्म कथा। ।। १७६ ।।
SR No.020178
Book TitleDashvaikalika Sutram
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherShripalnagar Jain S M P Trust
Publication Year2012
Total Pages466
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size94 MB
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