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चिकित्सा-चन्द्रोदय। होते हों, तो मक्खन और मिश्री खिलाओ या कच्चा भैसका दूध मिश्री मिलाकर पिलाओ । हिकमतमें “दूध" ही इसका दर्प-नाशक लिखा है । शीतल जलमें मिश्री मिलाकर पीनेसे भी थूहरका विष शान्त हो जाता है।
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कलिहारीका वर्णन और उसकी
विष-शान्ति के उपाय ।
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ह लिहारीका वृक्ष पहले मोटी घासकी तरह होता है tram और फिर बेलकी तरह बढ़ता है। इसके पत्ते अदरखके
जैसे होते हैं। इसका पेड़ बाढ़ या झाड़ीके सहारे OSDO लगता है। पुराना वृक्ष केलेके पेड़ जितना मोटा होता है । गर्मी में यह सूख जाता है । फूलोंकी पंखड़ियाँ लम्बी होती हैं । फूल गुड़हरके फूल-जैसे होते हैं । फूलोंका रंग लाल, पीला, गेरुआ
और सफ़ेद होता है । फूल लगनेसे वृक्ष बड़ा सुन्दर दीखता है । इसकी जड़ या गाँठ बहुत तेज़ और जहरीली होती है। संस्कृतमें इसको गर्भघातिनी, गर्भनुत, कलिकारी आदि; हिन्दीमें कलिहारी; गुजरातीमें कलगारी; मरहठीमें खड्यानाग, बँगलामें ईशलांगला और लैटिनमें ग्लोरिओसा सुपरबा या एकोनाइटम नेपिलस कहते हैं। __ निघण्टुमें लिखा है, कलिहारीके क्षुप नागबेलके समान और बड़के
आकारके होते हैं। इसके पत्ते अन्धाहूलीके-से होते हैं। इसके फूल लाल, पीले और सफेद मिले हुए रंगके बड़े सुन्दर होते हैं । इसके फल तीन रेखादार लालमिर्च के समान होते हैं । इसकी लाल छालके भीतर इलायचीके-से बीज होते हैं। इसके नीचे एक गाँठ होती है । उसे वत्सनाभ और तेलिया मीठा कहते हैं। इसकी जड़ दवाके काम
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