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विष-उपविषोंकी विशेष चिकित्सा-"थूहर”। ६३. पीने या बेकायदे पीनेसे दस्तोंका नम्बर लग जाता है और वे बन्द नहीं होते । यहाँ तक कि खूनके दस्त हो-होकर मनुष्य मर जाता है। "चरक” के सूत्रस्थानमें लिखा है, सुख-पूर्वक दस्त करानेवालोंमें निशोथकी जड़, मृदु विरेचकोंमें अरण्ड और तीक्ष्ण दस्त करानेवालोंमें थूहर सर्वश्रेष्ठ है । वास्तवमें, थूहरका दूध बहुत ही तीक्ष्ण विरेचन या तेज़ दस्तावर है । आजकल इसके दूधसे दस्त नहीं कराये जाते ।
गुल्म, कोढ़, उदर रोग एवं पुराने रोगोंमें इसको देकर दस्त कराना हित है; पर आजकलके कमजोर रोगी इसको सह नहीं सकते । अतः इसको किसी अड़ियल और पुराने रोगके सिवा और रोगोंमें न देना ही अच्छा है।
थूहरसे तिल्ली, प्रमेह, शूल, आम, कफ, सूजन, गोला, अष्ठीला, आध्मान, पाण्डुरोग, उदरव्रण, ज्वर, उन्माद, वायु, बिच्छूका विष, दूषी-विष, बवासीर और पथरी आराम हो जानेकी बात भी निघण्टोंमें लिखी है। . हिलते हुए दाँतमें अगर बड़ी पीड़ा हो, तो थूहरका दूध जरा ज़ियादा-सा लगा देनेसे वह गिर पड़ता है । इसके दूधका फाहा दूखती हुई दाढ़ या दाँतमें होशियारीसे लगानेसे दर्द मिट जाता है । दूखती जगहके सिवा, जड़में लग जानेसे यह दाँतको हिला या गिरा देता है ।
हिकमतवाले थूहरके दूधको जलोदर, पाण्डुरोग और कोढ़पर अच्छा लिखते हैं । वे कहते हैं, यह मसाने--वस्तिकी पथरीको तोड़ कर निकाल देता है । जिस अंगपर लगाया जाता है, उसीको आगकी तरह फूंक देता है । इसके डंठल और पत्तोंकी राख करके, उसमेंसे जरा-जरा-सी नमकके साथ खानेसे अजीर्ण, तिल्ली और पेटके रोग शान्त हो जाते हैं। पर लगातार कुछ दिन खानी चाहिये ।
थूहरके विकारोंकी शान्तिके उपाय । अगर थूहरका दूध जियादा या बेकायदे पीनेसे खूनके दस्त
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