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चिकित्सा-चन्द्रोदय । ... सन्निपातेऽर्कमूलं स्यात्साज्यं वा लशुनौपणे !
द्वाविंशल्लंघनं कार्य चतुर्थांश तथोदकम् ।। - सन्निपातमें प्राककी जड़ पीसकर घीके साथ खावे या लहसन
और सोंठ मिलाकर खावे, तथा बाईस लंघन करे और सेरका पाव भर रहा पानी पीवे ।
(३०) मदारकी जड़, कालीमिर्च और अकरकरा--सबको समानसमान लेकर खरलमें डाल, धतूरेकी जड़के रसके साथ घोटो और चने-समान गोलियाँ बनाकर छायामें सुखा लो । हैजेवालेको दिनमें चार-पाँच गोली तक देनेसे अवश्य लाभ होगा। परीक्षित है ।
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डंडी मोटी और काट
थूहर या सेंहुड़का वर्णन और उसके
विषकी शान्तिके उपाय । **** *********** ....०० हर और सेंहुड़ दोनों एक ही जातिके वृक्ष हैं । सेंहुड़की
डंडी मोटी और काँटेदार होती है और पत्ते नर्म-नर्म
पथरचटेके जैसे होते हैं। दूध इसकी शाखा-शाखा o
और पत्ते-पत्तेमें होता है । थूहरकी डण्डी पतली होती है और पत्ते भी छोटे-छोटे, हरी मिर्च के जैसे होते हैं। इसके सभी अङ्गोंमेंसे दूध निकलता है। इसकी बहुत जाति है--तिधारा, चौधारा, पचधारा, षटधारा, सप्तधारा, नागफनी, विलायती, आँगुलिया, खुरासानी और काँटेवाली-ले सब थूहर पहाड़ोंमें होते हैं। ___ थूहरका दूध उष्णवीर्य, चिकना, चरपरा और हलका होता है । इससे वायु-गोला, उदर-रोग, अफारा और विष नाश होते हैं । कोढ़ और उदर-रोग आदि दीर्घ रोगोंमें इसके दूधसे दस्त कराते हैं और लाभ भी होता है; पर थूहरका दूध बहुत ही तेज़ दस्तावर होता है। ज़रा भी जियादा
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