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विष-उपविर्षोंकी विशेष चिकित्सा-"कलिहारी"। ६५ में आती है। मात्रा ६ रचीकी है । कलिहारी सारक, तीक्ष्ण तथा गर्भशल्य और व्रणको दूर करनेवाली है। इसके लेपमात्रसे ही शुष्कगर्भ और गर्भ गिर जाता है। इससे कृमि, वस्ति, शूल, विष, कोढ़, बवासीर, खुजली, व्रण, सूजन, शोप और शूल नष्ट हो जाते हैं । इसकी जड़का लेप करनेसे बवासीरके मस्से सूख जाते हैं, सूजन उतर जाती है, व्रण और पीड़ा आराम हो जाती है।
कलिहारीसे हानि । अगर कलिहारी बेकायदे या जियादा खा ली जाती है, तो दस्त लग जाते हैं और पेटमें बड़े जोरकी ऐंठनी और मरोड़ी होती है। जल्दी उपाय न होनेसे मनुष्य बेहोश होकर और मल टूटकर मर जाता है; यानी इतने दस्त होते हैं, कि मनुष्यको होश नहीं रहता और अन्तमें मर जाता है।
विष-शान्तिके उपाय । (१) अगर कलिहारीसे दस्त वगैरः लगते हों, तो बिना घी निकाले गायके माठेमें मिश्री मिलाकर पिलाओ।
(२) कपड़े में दही रखकर और निचोड़कर, दहीका पानी-पानी निकाल दो। फिर जो गाढ़ा-गाढ़ा दही रहे, उसमें शहद और मिश्री मिलाकर खिलाओ । इन दोनों से किसी एक उपायसे कलिहारीके विकार नाश हो जायेंगे।
औषधि-प्रयोग। (१) करिहारी या कलिहारीकी जड़को पानीमें पीसकर नारू या बाले पर लगानेसे नारू या बाला आराम हो जाता है।
(२) कलिहारीकी जड़ पानीमें पीसकर बवासीरके मस्सोंपर लेप करनेसे मस्से सूख जाते हैं। ___(३) कलिहारीकी जड़के लेपसे व्रण, घाव, कंठमाला, अदीठफोड़ा और बद या बाघी,-ये रोग नाश हो जाते हैं।
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