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. चिकित्सा-चन्द्रोदय ।
(१५) सज्जीखार, सैंवानोन और शुद्ध सींगिया विष-इन्हें सिरकेमें मिलाकर, कानोंमें डालनेसे कानकी घोर पीड़ा शान्त हो जाती है।
(१६) देवदारु, शुद्ध सींगिया या वत्सनाभ विष, गो-मूत्र, घी और कटेहली-इनके पीनेसे बोलने में रुकना या हकलाना आराम होजाता है। ___ सूचना-पूरे अनुभवी वैद्योंके सिवा, मामूली आदमी ऊपर लिखे नुसने न स्वयं सेवन करें और न किसी और को दें अथवा बतलावें । अनुभवी वैद्य भी खूब सोच-विचारकर, बहुत ही हल्की मात्रामें, देने योग्य रोगीको उस अवस्थामें इन्हें दें, जब कि रोग एकदमसे असाध्य हो गया हो और आराम होनेकी उम्मीद जरा भी न हो । विष-सेवन कराने में इस बातका बहुत ही ध्यान रहना चाहिये, कि रोग और रोगीके बलाबल से अधिक मात्रा न दी जाय । जरा-सी भी असावधानीसे मौतका सामान हो जा सकता है। विष सेवन करना या कराना आगसे खेलना है। अच्छे वैद्य, ऐसे विषयुक्त योगोंको बिल्कुल नाउम्मेदीकी हालतमें देते हैं। साथ ही देश, काल, रोगीकी प्रकृति, पथ्यापथ्य आदिका पूरा विचार करके तब देते हैं। वर्षाकाल या बदली के दिनोंमें भूलकर भी विष न देना चाहिये। मतलब यह है, विषोंके देने में बड़ी भारी बुद्धिमानी, तर्क वितर्क, युक्ति और चतुराईकी जरूरत है। अगर खूब सोच-समझकर, घोर असाध्य अवस्थामें विष दिये जाते हैं, तो अनेक बार मरते हुए रोगी भी बच जाते हैं । अतः इनको काममें लाना चाहिये खाली डरकर ही न रह जाना चाहिये ।
(१७ ) बच्छनाभ विषको पानीके साथ घिसकर बरं, ततैये, बिच्छू या मक्खी आदिके काटे स्थानपर लगानेसे अवश्य लाभ होता है। यह दवा कभी फेल नहीं होती।
(१८) बच्छनाभ विषको पानीके साथ पीसकर पसलीके दर्द, हाथ-पैर आदि अंगोंके दर्द या वायुकी अन्य पीड़ाओं और सूजनपर लगानेसे अवश्य आराम होता है ।
(१६) शुद्ध बच्छनाभ विष, सुहागा, कालीमिर्च और शुद्ध नीला
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