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विष-उपविषोंकी विशेष चिकित्सा--"वत्सनाभ”। ४७ थोथा--इन चारोंको बराबर-बराबर लेकर महीन पीस लो। फिर खरलमें डाल, ऊपरसे “बन्दाल"का रस दे-देकर खूब घोटो । जब घुट जाय चार-चार माशेकी गोलियाँ बना लो। इन गोलियोंको मनुष्यके मूत्र या गोमूत्रके साथ सेवन करनेसे कन्दादिक विषकी पीड़ा एवं और जहरोंकी पीड़ा शान्त हो जाती है। इतना ही नहीं, घोर ज़हरी काले साँपका जहर भी इन गोलियोंके सेवन करनेसे उतर जाता है । यह नुसना साँपके जहरपर परीक्षित है।
बच्छनाम विषकी शान्ति के उपाय । आरम्भिक उपाय-- ( क ) विष खाते ही मालूम हो जाय, तो तत्काल वमन कराओ ।
(ख) अगर ज़ियादा देर हो जाय, विष पक्काशयमें चला जाय, तो तेज़ जुलाब दो या साबुन और पानीकी पिचकारीसे गुदाका मल निकालो। अगर जहर खून में हो, तो फस्द खोलकर खून निकाल दो। मतलब यह है, वेगोंके अनुसार चिकित्सा करो। अगर वैद्य न हो, तो नीचे लिखे हुए उपायोंमेंसे कोई-सा करोः
(१) सोंठको चाहे जिस तरह खानेसे बच्छनाभ विषके विकार नष्ट हो जाते हैं। __(२) घरका धूआँसा, मँजीठ और मुलेठीके चूर्णको शहद और घीके साथ चाटनेसे विषके उपद्रव शान्त हो जाते हैं।
(३) अर्जुनवृक्षकी छालका चूर्ण घी और शहद के साथ चाटनेसे विषके उपद्रव शान्त हो जाते हैं।
(४) अगर बच्छनाभ विष खाये देर हो जाय, तो दूधके साथ दो माशे निर्विषी पिलाओ। साथ ही घी दूध आदि तर और चिकने पदार्थ भी पिलाओ। ___नोट- अगर ज़हरका ज़ोर कम हो, तो निर्विषी कम देनी चाहिये । अगर बहुत ज़ोर हो, तो दो-दो माशे निर्विषी दूधके साथ घण्टे-घण्टे या दो-दो घण्टेपर,
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