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चिकित्सा-चन्द्रोदय ।
फिर उन्हें साफ पानीसे धोकर, एक महीन कपड़ेमें बाँध लो। फिर एक हाँडीमें बकरीका मूत्र या गायका दूध भर दो। हाँडीपर एक आड़ी लकड़ी रखकर, उसीमें उस पोटलीको लटका दो । पोटली दूध या मूत्रमें डूबी रहे । फिर हाँडीको चूल्हे पर चढ़ा दो और मन्दाग्निसे तीन घण्टे तक पकाओ। पीछे विषको निकालकर धो लो और सुखाकर रख दो। आजकल इसी विधिसे विष शोधा जाता है। ___ नोट-अगर विषको गायके दूधमें पकानो, तो जब दूध गाढ़ा हो जाय या फट जाय, विषको निकाल लो और उसे शुद्ध समझो ।
मात्रा चार जौ-भर विषकी मात्रा हीन मात्रा है, छ जौ-भरकी मध्यम और आठ जौ-भरकी उत्कृष्ट मात्रा है । महाघोर व्याधिमें उत्कृष्ट मात्रा, मध्यममें मध्यम और हीनमें हीन मात्रा दो। उग्र कीट-विष निवारणको दो जौ-भर और मन्द विष या बिच्छूके काटनेपर एक तिल-भर विष काममें लाओ।
विषपर विष क्यों ? जब तंत्र-मंत्र और दवा किसीसे भी विष न शान्त हो, तब पाँचवें वेगके पीछे और सातवें वेगके पहले, ईश्वरसे निवेदन करके, और किसीसे भी न कहकर, घोर विपके समय, विषकी उचित मात्रा रोगीको सेवन कराओ। ___ स्थावर विष प्रायः कफके तुल्य गुणवाले होते हैं और ऊपरकी ओर जाते हैं। यानी आमाशय वगैरःसे खून वगैरःकी तरफ़ जाते हैं और जंगम विष प्रायः पित्तके गुणवाले होते हैं और खून में मिलकर भीतरकी तरफ़ जाते हैं। इस तरह एक विष दृसरेके विपरीत गुणवाला होता है और एक दूसरेको नाश करता है। इसीसे साँप आदिके काटनेपर जब भयङ्कर अवस्था हो जाती है; कोई उपाय काम नहीं देता, तब बच्छनाभ या सींगिया विष खिलाते, पिलाते और लगाते हैं।
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