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विष-उपविषोंकी विशेष चिकित्सा-"वत्सनाभ"। ४१ - "वैद्यकल्पतरु" में एक सज्जन लिखते हैं, बच्छनाभको अँगरेजीमें "एकोनाइट' कहते हैं। इसके खानेसे--होठ, जीभ और मुँहमें झनझनाहट और जलन, मैं हसे पानी छूटना और कय होना, शरीर काँपना, नेत्रोंके सामने अँधेरा आना, कानोंमें जोरसे सनसनाहटकी आवाज होना, छूनेसे मालूम न पड़ना, बेहोश होना, साँसका धीरा पड़ना, नाड़ीका कमजोर और छोटी होना, साँस द्वारा निकली हवाका शीलता होना, हाथ-पैर ठण्डे हो जाना और अन्तमें खिंचावके साथ मृत्यु हो जाना,-ये लक्षण होते हैं । शान्तिके उपायः-- (१) कय करानेका उपाय करो। (२) आध-आध घण्टेमें तेज़ काफी पिलाओ ।
(३) गुदाकी राहसे, पिचकारी द्वारा, साबुन-मिला पानी भरकर आँतें सात करो।
(४) घी पिलाओ। यद्यपि विष प्राणनाशक होते हैं, पर वे ही अगर युक्तिपूर्वक सेवन किये जाते हैं, तो मनुष्यका बल-पुरुषार्थ बढ़ाते, त्रिदोष नाश करते और साँप वगैरः उग्र विषवाले जीवोंके काटनेसे मरते हुओंकी प्राण-रक्षा करते हैं; पर विषोंको शोधकर दवाके काममें लेना चाहिये, क्योंकि अशुद्ध विषमें जो दुर्गुण होते हैं, वे शोधनेसे हीन हो जाते हैं।
विष शोधन-विधि । . विषके छोटे-छोटे टुकड़े करके, तीन दिन तक, गोमूत्र में भिगो रखो। फिर उन्हें साफ़ पानीसे धो लो। इसके बाद, लाल सरसोंके तेलमें भिगोये हुए कपड़े में उन्हें बाँधकर रख दो। यह विधि "भावप्रकाश में लिखी है।
अथवा · विषके टुकड़े करके उन्हें तीन दिन तक गोमूत्र में भिगो रखो;
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