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चिकित्सा-चन्द्रोदय । 5 वत्सनाभ-विषका वर्णन और उसकी
शान्तिके उपाय ।
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XXXXX जकल सुश्रुतके १३ या भावप्रकाशके १ कन्द-विर्षों मेंसे
अ वत्सनाभ विष और शृङ्गी विषका उपयोग जियादा होता XXXX है। ये दोनों विष अलग-अलग होते हैं, पर आजकलके पंसारी दोनोंको एक ही समझते हैं। सींग के आकारकी जड़, जो रङ्गमें काली और तोड़ने में कुछ चमकदार होती है, उसे ही दोनों नामोंसे दे देते हैं। इनको मीठा विष या तेलिया भी कहते हैं।
"भावप्रकाश"में लिखा है, बच्छनाभ विष सम्हालूके-से पत्तोंवाला और बछड़ेकी नाभिके समान आकारवाला होता है। इसके वृक्षके पास और वृक्ष नहीं रह सकते। ___ "सुश्रुत" में लिखा है, वत्सनाभ विषसे ग्रीवा-स्तम्भ होता है तथा मल-मूत्र और नेत्र पीले हो जाते हैं। सींगिया विषसे शरीर शिथिल हो जाता, जलन होती और पेट फूल जाता है। ___ बच्छनाभ विष अगर बेक़ायदे या ज़ियादा खाया जाता है, तो सिर घूमने लगता है, चक्कर आते हैं, शरीर सूना हो जाता और सूखने लगता है । अगर विष बहुत ही ज़ियादा खाया जाता है, तो हलकमें सूनापन, झंझनाहट और रुकावट होती तथा क़य और दस्त भी होते हैं । इसका जल्दी ही ठीक इलाज न होनेसे खानेवाला मर भी जाता है।
"तिब्बे अकबरी'में लिखा है, बीश--वत्सनाभ विष एक विषैली जड़ है। यह बड़ी तेज़ और मृत्युकारक है। इसके अधिक या अयोग्य रीतिसे खानेसे होठ और जीभमें सूजन, श्वास, मूर्छा, घुमरी और मिर्गी रोग तथा बल-हानि होती है । इससे मरनेवाले मनुष्यके फेंफड़ोंमें घाव और विषमज्वर होते हैं।
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