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उरःक्षत-चिकित्सा-ग़रीबी नुसख्ने । लिख आये हैं कि यकृतमें सूजन या मवाद आ जानेसे ही जीर्णज्वर, यक्ष्मा और उरःक्षत रोग जड़ पकड़ लेते हैं। इन रोगोंमें यकृतमें बहुधा विकार हो ही जाते हैं। वैद्यको चाहिये, कि रोगीके यकृतपर हाथसे टोहकर और रोगीको दाहिनी करवट सुलाकर, इस बातका पता लगा ले, कि यकृतमें मवाद या सूजन तो नहीं है। अगर मवाद या सूजन होगी, तो रोगीको दाहिनी करवट कल नहीं पड़ेगी, उस ओर सोनेसे खाँसीका ज़ोर होगा और छूनेसे पके फोड़ेपर हाथ लगानेका-सा दर्द होगा । जब यह मालूम हो जाय, कि यकृतमें खराबी है, तब यह देखना चाहिये कि, सूजन गरमीसे है या सर्दीसे; अगर सूजन गरमीसे होगी, तो यकृत-स्थान छूनेसे गरम मालूम होगा, यकृतमें जलन होगी और वहाँ खुजली चलती होगी। अगर सूजन सर्दीसे होगी, तो छूनेसे यकृतकी जगह कड़ी--सस्त्रत और शीतल मालूम होगी।
(२३) अगर सूजन सर्दीसे हो, तो दालचीनी १० माशे, सुगन्धबाला १० माशे, बालछड़ १० माशे और केशर ४ माशे, इनको "बाबूनेके तेल में पीसकर यकृतपर धीरे-धीरे मलो।
(२४) अगर सूजन गरमीसे हो, तो तेजपात ३ माशे, कपूर ३ माशे, रूमी मस्तगी ३ माशे, गेरू ६ माशे, गुलाबके फूल ६ माशे, गुलबनफशा ६ माशे, सफेद चन्दन ६ माशे और सूखा धनिया ६ माशे-इन सबको खूब महीन पीसकर, दिनमें चार-पाँच बार, यकृतपर लेप करो। छहों प्रकारके शोष-रोगोंकी चिकित्सा-विधि।
व्यवाय शोषकी चिकित्सा । ऐसे रोगीका मांसरस, मांस और घी-मिले भोजन तथा मधुर और अनुकूल पदार्थोंसे उपचार करना चाहिये ।
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