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चिकित्सा-चन्द्रोदय । भी, सूर्यास्तके पहले ही, रोगीको जंगल में जाना और उसी तरह मुँ हसे श्वास खींच-खींचकर, कुछ देर रोककर, नाकसे छोड़ना चाहिये । अगर मौसम बरसात हो, तो जंगलमें न जाकर अपने घरके बाहर किसी सायादार और खुली जगहमें ताजी हवा खानी चाहिये, पर बरसाती ठण्डी हवासे बचना भी चाहिये । मौसम गरमीमें, रोगी धनवान हो तो, जरूर शिमला, मसूरी, दार्जिलिंग प्रभृति शीतल स्थानोंमें चले जाना चाहिए। क्षयरोगीको गरमी बहुत लगती है । अगर वह ऐसे ठण्डे स्थानोंमें जाकर अपना इलाज करावे, तो बड़ी जल्दी रोग-मुक्त हो । क्षय-रोगीको स्नानकी मनाही नहीं है। अगर उसमें ताक़त हो, तो डुबकी लगाकर नहावे । अगर वह इस लायक न हो, तो शीतल जलमें तौलिया भिगो-भिगोकर शरीरको रगड़-रगड़कर धोवे और फिर पोंछकर साफ धुले हुए वस्त्र पहन ले । अगर रोगी कमजोर हो, तो निवाये जलसे यह काम करे । समुद्र-स्नान अगर मयस्सर हो, तो जरूर करे । वह, क्षय-रोगीको मुफीद है। ___ जब रोगी बाहर टहलने जावे, तब घरके दूसरे लोग उस घरको साफ करके, उसके पलँगकी चादर वगैरः बदल दें । क्षयवालेके पलँगकी चादरको नित्य बदल देना अच्छा है; क्योंकि वह उसके पसीनोंसे रोज़ गन्दी हो जाती है । उसको कपड़े भी नित्य-की-नित्य धोबीके धुले हुए या घरके धुले पहनाने चाहिये । कुछ भी न हो तो रोगीके कपड़ोंको खूब उबलते हुए जलमें डाल दें और उसमें थोड़ा-सा कारबोलिक ऐसिड भी डाल दें ताकि क्षयके कीटाणु वगैरः नष्ट हो जावें । रोगीके कपड़े घरके और लोग हरगिज़ काममें न लावें । रोगीको खाने-पीनेको पथ्य पदार्थ देने चाहिये । इस रोगमें तन्दुरुस्त गधीका दूध हितकर समझा जाता है। पर उसे यानी गधीको गिलोय और अड़ सा वगैरः खिलाना चाहिये । गायका दूध दो, तो तन्दुरुस्त गायका दो। बहुत-सी गायोंको यक्ष्मा होता है । उनका दूध पीनेसे अच्छे
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