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क्षय-रोगपर प्रश्नोत्तर। रोगीके कमरेमें लोबान या गूगलकी धूनी रोज़ सवेरे-शाम देनी चाहिये । गूगलकी धूनी बहुत उत्तम होती है । “अथर्व वेद में लिखा है
न तं यक्ष्मा अरुन्धते नैनंशयथाअश्नुते । यं भेषजस्य गुग्गुलो सुरभिर्गन्ध अश्नुते ॥ विश्वञ्चस्तस्माद यक्ष्मा मृगाश्वाइवेरते ।
यद् गुग्गुल सैन्धव वद्वाप्यसि समुदियम् ॥ जो आदमी गूगलकी सुन्दर गन्धको सँ घता है, उसे यक्ष्मा नहीं सताता । सब तरहके कीटाणु इसकी गन्धसे हिरनोंकी तरह भाग जाते हैं। अतः रोगीके कमरे और आस-पासके कमरों में, गूगल, लोबान, कपूर, छारछरीला, मोथा, सफेद चन्दन और धूप इत्यादिकी धूनी नित्य-प्रति देनी चाहिए।
रोगीके कमरे और उसके आस-पासके कमरों में गुलाब-जल और इत्र वगैरः सुगन्धित द्रव्योंका छिड़काव करना चाहिये । द्वारोंपर फूलोंकी मालाएँ, आमकी बन्दनवारें या नीमके पत्तोंको बाँध देना चाहिये, ताकि कमरमें जो हवा आवे वह शुद्ध और खुशबूदार हो।
रोगीको नित्य सवेरे सूर्योदयसे पूर्व ही उठा देना चाहिये। फिर उसे किसी ऐसी सवारी में जिसमें बैठनेसे कष्ट न हों, बिठाकर शहरसे बाहर जंगलमें ले जाना चाहिये । वहीं उसे शौच वगैरःसे निपटाना चाहिये । सवेरेकी बेलाको अमृत-बेला कहते हैं । उस समयकी अमृतमय वायुसे खून में लाली और तेजी आती और मन प्रसन्न होता है। हाँ, रोगीको चाहिये, कि वह वहाँ अपने दोनों हाथ सिरपर उठाकर, मुँहसे धीरे-धीरे हवा खींचे और नाक द्वारा धीरे-धीरे निकाल दे । हवाको कुछ देर अपने अन्दर रोककर तब छोड़ना चाहिये। ऐसा व्यायाम नित्य-प्रति करनेसे रोगीको बड़ा लाभ होगा । शामको
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