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चिकित्सा-चन्द्रोदय । दिलचस्प किस्से-कहानी सुनावे । रोगीसे बहुत देर तक बातें करनेसे उसमें कमजोरी आती है और कमजोरी बढ़नेसे रोग बढ़ता और मौत पास आती है।
रोगीके साफ बिछौनोंपर उत्तमोत्तम सुगन्धित फूल डाले रखने चाहिएँ । उसे खुशबूदार फूलों की मालाएँ पहनानी चाहिएँ । उसके सामने मेज पर गुलदस्ते रखने चाहिएँ । अगर रोगी धनवान हो, तो उसे फूलोंकी शय्यापर सुलाना चाहिए। - रोगीक पीनेका पानी-वैद्यकी आज्ञानुसार-ौटा-छानकर, साफ सुराही में रखना चाहिये। उस सुराहीको रोज़ कपूरसे बसा देना चाहिये । पीनेके पानीपर कपड़ा ढका रखना चाहिये । रोगीके आराम होनेका इसपर बहुत-कुछ दारमदार है । सवेरेका औटाया पानी रातको
और रातका औटाया सवेरे नहीं पिलाना चाहिए । जल हमेशा खुले मुँह-बिना ढक्कन दिये-ौटाना उचित है।
रोगीके कमरेमें अधिक भीड़-भाड़ न होने देनी चाहिए । लोगोंके जमा होनेसे कमरेकी हवा गन्दी होती है, जिससे रोगीको नुकसान पहुँचता है। उसके कमरेमें धूल-धूआँ वगैरः न होने चाहिएँ । धूल और धूएँ से खाँसी रोग पैदा होता और बढ़ता है और क्षय-रोगीको खाँसी पहले ही होती है।
रोगीके कमरे में बिजलीका पङ्खा न होना चाहिये। अगर जरूरत हो तो कपड़ेका पङ्खा लगवा लेना चाहिए-अथवा दूसरे भागमें लिखे हुए तरीकेसे हाथके पंखेकी हवा करनी चाहिए । बिजली या गैसकी रोशनी भी रोगीको हानिकारक होती है। मिट्टीका तेल या किरासिन तेल भी बुरा होता है । चिराग़ देशी ढङ्गका जलाना अच्छा होता है। अगर रोगी अमीर हो, तो कपूरकी बत्तियाँ या घीके दीपक जलाने चाहिए । ग़रीबको तिलीके तेलके चिराग़ जलाने चाहिये । मोमबत्तीकी रोशनी भी अच्छी होती है।
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