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क्षय-रोगपर प्रश्नोत्तर।
६२६ भलोंको क्षय हो जाता है । हाँ, गायका दूध कच्चा कभी न पिलाना चाहिये, औटाकर पिलाना चाहिये।
शुक्रजन्य क्षयरोगीको दूध-घी, मांस-रस या शोरवा अथवा शतावर आदिके साथ बनाये पदार्थ या दूध आदि हितकर हैं । जिसे शोकसे क्षय हुआ हो उसे मीठे, ठण्डे, चिकने दूध वगैरः पदार्थ देने चाहिएँ । उसको तसल्ली देनी चाहिये और ऐसी बातें कहनी चाहिए, जिनसे उसका दिल खुश हो । क्षयवालेको उसका दाह शान्त करने, ताक़त लाने और कफ नाश करनेके लिये आगे लिखा हुआ 'षडंग यूष" देना चाहिए। अध्वशोष (राह चलनेसे हुए शोष ) वाले रोगीको ठण्डी, मीठी और पुष्टिकारक दवाएँ और पथ्य देने चाहिए। उसे दिनमें सुलाना और हर तरह आराम देना चाहिए ।
क्षय-रोगीको, आम तौरपर, गेहूँका दलिया, गेहूँ के दरदरे आटेके फुलके, जौका आटा, साँठी चाँवल, घी, दूध, मक्खन, बकरेके मांसका शोरवा, बथुएकी तरकारी, कमलकी जड़, तोरई, हरा कर्दू , पुराने चाँवलोंका भात, पुराने गेहूँकी खमीर उठायी रोटी, जौकी पूरी, कालीमिर्चोंके साथ पकाया मिश्री-मिला गायका दूध पिलाना चाहिए
और आसानीसे पच जानेवाली खानेकी चीजें रोगीको देना अच्छा है । साबूदाना, अरारूद, मैलिन्सफूड आदि पथ्य हलके होते हैं । बहुत ही कमजोरको यही देने चाहिएँ । जंगली पक्षियों और हिरन आदिका मांस-रस, हल्की शराब, बकरीका घी, जौका माँड, मूंगका जूस और बकरके मांसका शोरवा विशेष हितकर है । यह शोरवा, जुकाम, सिरदर्द, खाँसी, स्वास, स्वरभंग और पसलीकी पीड़ा-क्षय-सम्बन्धी छहों विकारोंके शान्त करने में बहुत अच्छा समझा जाता है।
बहुत-सी उपयोगी बातें हमने “यक्ष्मा-चिकित्सामें याद रखनेयोग्य बातें" शीर्षकके अन्तर्गत लिखी हैं। उन सबपर रोगी और चिकित्सकको खूब ध्यान देना चाहिये।
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