________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
स्थावर विषोंकी सामान्य चिकित्सा । ३१ ल्हिसौड़ा, सिरस, तुलसी, केतकी और सिंभालू--इन सातोंके फूल, धवके फूल, महासर्जके फूल, तिनिशके फूल, गूगल, केशर, कँदूरी, सर्पाक्षी और गन्धनाकुली-इन ८५ दवाओंको महीन कूट-पीसकर छान लो। फिर गोरोचन, शहद और घी मिलाकर, सींगमें भरकर, सींगसे ही बन्द करके रख दो।
जिस मनुष्यके कन्धे टूट गये हों, नेत्र फट गये हों, मृत्यु-मुखमें पतित हो गया हो, उसको भी वैद्य इस श्रेष्ठ अगदसे जिला सकता है। यह अगद सब अगदोंका राजा है और राजाओंके हाथोंमें रहने योग्य है। इसके शरीरमें लेपन करनेसे राजा सब मनुष्योंका प्यारा हो सकता है और इन्द्रादि देवताओंके बीचमें भी कान्तिवान मालूम हो सकता है। और क्या, अग्निके समान दुर्निवार्य, क्रोधयुक्त, अप्रमित तेजस्वी नागपति वासुकीके विषको भी यह अगद नष्ट कर सकता है।
रोग-नाश--इस अगदसे स्थावर और जंगम सब तरहके विष नाश होते हैं।
सेवन विधि-घी, शहद या दूध वगैरहमें मिलाकर इसे रोगीको पिलाना चाहिये। इसको लेप, अञ्जन और नस्यके काममें भी लाते हैं ।
अपथ्य-राब, सोहंजना, काँजी, अजीर्ण, नया धान, भोजन-परभोजन, दिनमें सोना, मैथुन, परिश्रम, कुल्थी, क्रोध, धूम, मदिरा और तिल--इन सबको त्यागना चाहिये ।
पथ्य-चिकित्सा होते समय, पृष्ठ ३२ में लिखी “विषन्न यवागू" देनी चाहिये | आराम होनेपर हितकारी अन्न-पान विचारकर देने चाहियें।
मृत सञ्जीवनी। स्पृक्का--असबरग, केवटी मोथा गठोना, फिटकरी, भूरिछरीला, पत्थर-फूल, गोरोचन, तगर, रोहिष तृण--रोहिस घास, केशर, जटामासी, तुलसीको मञ्जरी, बड़ी इलायची, हरताल, पँवारके बीज, बड़ी
For Private and Personal Use Only