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चिकित्सा-चन्द्रोदय । . कटेरी, सिरसके फूल, सरलका गोंद--गन्दाबिरोजा, स्थल-कमल, इन्द्रायण, देवदारु, कमल-केशर, सादा लोध, मैनसिल, रेणुका, चमेलीके फूलोंका रस, आकके फूलोंका रस, हल्दी, दारुहल्दी, हींग, पीपर, लाख, नेत्रवाला, मूंगपर्णी, लाल चन्दन, मैनफल, मुलहटी, निर्गुण्डी--सम्हालू , अमलताश, लाल लोध, चिरचिरा, प्रियंगू , नाकुली-रास्ना और बायबिडङ्ग--इन ४३ दवाओंको, पुष्य नक्षत्रमें लाकर, बराबर-बराबर लेकर महीन पीस लो। फिर पानीके साथ खरल करके गोलियाँ बना लो।
रोग-नाश--इस 'मृत-सञ्जीवनी के पीने, लेप करने, तमाखूकी तरह चिलममें रखकर पीनेसे सब तरहके विष नष्ट होते हैं। यह विषसे मरे हुए के लिये भी जिलानेवाली है। इसके घरमें रहनेसे ही विषैले जीव और भूत-प्रेत, जादू-टोना आदिका भय नहीं रहता और लक्ष्मी आती है । ब्रह्माने अमृत-रचनाके पहले इसे बनाया था।
नोट--यह मृतसंजीवनी चरकमें लिखी है और चक्रदत्तमें भी लिख है। पर चक्रदत्त और चरकमें दो-चार चीज़ोंका भेद है। इस को सभीने बड़ी प्रशंसा की है । इसमें ऐसी कोई दवा नहीं है, जो न मिल सके; अत: वैद्योंको इसे घरमें रखना चाहिये । यह मृतसञ्जीवनी विषकी सामान्य चिकित्सामें काम आती है; यानी स्थावर और जङ्गम दोनों तरहके विष इससे नष्ट होते हैं। गृहस्थ लोग भी इसे काममें ला सकते हैं।
विषन यवागू। जंगली कड़वी तोरई, अजमोद, पाठा, सूर्यवल्ली, गिलोय, हरड़, सरस, कटभी, लिहसौड़े, श्वेतकन्द, हल्दी, दारुहल्दी, सफेद और लाल पुनर्नवा, हरेणु, सोंठ, मिर्च, पीपर, काला और सफेद सारिवा तथा खिरेंटी-इन २१ दवाओंको लाकर काढ़ा बना लो। फिर इस काढ़ेके साथ यवागू पका लो। इस यवागूके पीनेसे स्थावर और जङ्गम दोनों तरहके विष नाश होते हैं।
पीछे लिखे हुए स्थावर विषके वेगोंके बीचमें, वेगोंका इलाज
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