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चिकित्सा-चन्द्रोदय।
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स्थावर विष नाशक नुसखे ।। caccarTICCEORGET RECREERIEOCERO
अमृताख्य घृत। ___ोगेके बीज, सिरसके बीज, दोनों श्वेता और मकोय--इन पाँचोंको गोमूत्रमें पीसकर, लुगदी बना लो। लुगदीसे चौगुना घी और घोसे चौगुना दूध लेकर, घीकी विधिसे घी पका लो। इस घोके पीनेसे स्थावर और जंगम दोनों तरहके विष शान्त होते हैं। सुश्रुतमें लिखा है, इस घीके पीनेसे विषसे मरे हुए भी जी जाते हैं। सुश्रुतमें स्थावर विष-चिकित्सामें भी इसके सेवन करनेकी राय दी है और जंगम विषकी चिकित्साके अध्यायमें तो यह लिखा ही है । इससे स्पष्ट मालूम होता है, कि यह घी स्थावर विषके सिवा, सर्प प्रभृति अनेक विषैले जानवरोंके विषपर भी दिया जाता है।
नोट-दोनों श्वेताओंका अर्थ किसी टीकाकारने मेदा, महामेदा और किसीने कटभी, महाकटभी लिखा है और श्वेता स्वयं भी एक दवा है।
महासुगन्धि अगद । सफेद चन्दन, लाल चन्दन, अगर, कूट, तगर, तिलपर्णी, प्रपौंडरीक, नरसल, सरल, देवदारु, सफेद चन्दन, दूधी, भारङ्गी, नीली, सुगन्धिका-नाकुली, पीला चन्दन, पद्माख, मुलेठी, सोंठ, जटा-रुद्र जटा, पुन्नाग, इलायची, एलवालुक, गेरू, ध्यामकतृण, खिरेंटी, नेत्रवाला, राल, जटामासी, मल्लिका, हरेणुका, तालीसपत्र, छोटी इलायची, प्रियंगू , स्योनाक, पत्थरका फूल, शिलारस, पत्रज, कालानुसारिवा-- तगरका भेद, सोंठ, मिर्च, पीपर, कपूर, खंभारी, कुटकी, बाकुची, अतीस, कालाजीरा, इन्द्रायण, खस, वरण, मोथा, नख, धनिया, दोनों श्वेता, हल्दी, दारुहल्दी, थुनेरा, लाख, सैंधानोन, संचरनोन, बिड़नोन,, समन्दरनोन और कधियानोन, कमोदिनी, कमलपद्म, पाकके फूल, चम्पाके फूल, अशोकके फूल, तिल-वृक्षका पञ्चाङ्ग, पाटल, सम्भल,
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