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राजयक्ष्मा और उराक्षतकी चिकित्सा ।
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पूर्वकृत पाप भी क्षयरोगके कारण हैं। हारीत मुनि कहते हैं, जो मनुष्य पूर्व जन्ममें देवमूर्तियोंको तोड़ता है, गर्भगत जीवको दुःख देता है, गाय, राजा, ब्राह्मण और बालककी हत्या करता है, किसीके लगाये बाग़ और स्थानका नाश करता है, स्त्रियोंको जानसे मार डालता है-देवताओंको जलाता है; किसीका धन नाश करता है, देवताओंके धनको हड़पता है, गर्भ गिराता या हमल इस्कात करता है और किसीको विष देता हैउस मनुष्यको इन विपरीत कर्मो के फल-स्वरूप महादारुण रोग राजयक्ष्मा होता है। और भी लिखा है, स्वामीकी स्त्रीको भोगने, गुरुपत्नीकी इच्छा करने, राजाका धन हरने और सोना चुरानेसे भी राजयक्ष्मा होता है । कहा भी है
कुष्ठं च राजयक्ष्मा च प्रमेहो ग्रहणी तथा । मूत्रकृच्छाश्मरी कासा अतीसार भगन्दरौ । दुष्ट व्रणं गंडमाला पक्षाघातोक्षिनाशनम् ।
इत्येवमादयो रोगा महापापोद्भवाः स्मृताः ।। कोढ़, राजयक्ष्मा, प्रमेह, मूत्रकृच्छ्र, पथरी, खाँसी, अतिसार,. भगन्दर, नासूर, गण्डमाला, पक्षाघात-लकवा और नेत्र फूट जानाये सब रोग घोर पाप करनेसे होते हैं ।
यक्ष्मा आदि शब्दोंकी निरुक्ति । "भावप्रकाश में लिखा है-इस रोगका मरीज़ वैद्य-हकीमकी खूब पूजा करता है, इसलिये इसे "यक्ष्मा" कहते हैं।
किसीने लिखा है-राजा चन्द्रको क्षय रोग हुआ । वैद्योंको उसके आराम करनेमें बड़ी-बड़ी मुश्किलातोंका सामना करना पड़ा, उन्हें
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