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चिकित्सा-चन्द्रोदय। बड़ी-बड़ी कठिनाइयाँ दरपेश आई, तब वे लोग इस शोष या क्षय रोगको “यक्ष्मा" कहने लगे। ___ क्षय रोग सब रोगोंसे ज़बर्दस्त है, सबमें प्रबल है और अतिसार
आदि इसके भयङ्कर सिपाही है, इससे वैद्य इसे "शेगराज" कहते हैं । वास्तवमें यह है भी रोगोंका राजा ही। ___ सम्पूर्ण क्रियाओं और धातुओंको यह क्षय करता है, इसीसे इसे "क्षय” कहते हैं । "वाग्भट्ट' में लिखा है:--यह देह और औषधियोंको क्षय करता है, इसलिये इसे "क्षय" कहते हैं अथवा इसका जन्म ही क्षयसे है, इसलिये इसे "क्षय” कहते हैं । __ यह रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्र--इन सातों धातुओंको सोखता या सुखाता है, इसलिए इसका नाम “शोष" रखा गया है।
क्षय, शोष, रोगराज और राजयक्ष्मा-ये चारों एक ही यक्ष्मा रोगके चार नाम या पर्याय शब्द हैं।
क्षय रोगकी सम्प्राप्ति ।
क्षय रोग कैसे होता है ? जब कफ-प्रधान वात आदि तीनों दोष कुपित हो जाते हैं, तब उनसे रस बहनेवाली नाड़ियोंके मार्ग रुक जाते हैं । रसवाहिनी शिराओं या नाड़ियोंके रुकनेसे क्रमशः रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा
और शुक्र धातुएँ क्षीण होती हैं। जब सब धातुएँ क्षीण हो जाती हैं, तब मनुष्य भी क्षीण हो जाता है । __ मनुष्य जो कुछ खाता-पीता है, उसका पहले रस बनता है । रससे रक्त या खून, खूनसे मांस, मांससे मेद, मेदसे अस्थि, अस्थिसे मज्जा और मजासे शुक्र या वीर्य बनता है। समस्त धातुओंका कारणरूप “रस" है; यानी मांस, मेद आदि छहों धातुओंको बनानेवाला
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