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चिकित्सा-चन्द्रोदय।
कुश्ती लड़ते, बहुत भारी चीज़ खींचते या उठाते या ऐसे ही और काम करते हैं, अपनी ताक़तका ध्यान रखकर काम नहीं करते, बदनमें ८ घण्टे मिनहत करनेकी शक्ति होने पर भी १४ घण्टे काम करते हैं, उन्हें क्षय-रोग अवश्य होता है।
(४) चौथा कारण विषम भोजन है। जो लोग किसी दिन नाक तक ठूसकर खाते हैं, किसी दिन प्राधे पेट भी नहीं, छटॉक-भर चने चबाकर ही दिन काट देते हैं, किसी दिन, दिनके दस बजे, तो किसी दिन शामके २ बजे
और किसी दिन रातके अाठ बजे भोजन करते हैं, यानी जिनके खाने-पीनेका कोई नियम और क़ायदा नहीं है, वे पशु-रूपी मनुष्य क्षय-केशरीके शिकार होते हैं। अतः समझदारोंको खाने-पीने में नियम-विरुद्ध काम न करना चाहिये । हमने इस विषयमें अपनी बनाई सुप्रसिद्ध "स्वास्थ्यरक्षा" नामक पुस्तकमें विस्तारसे लिखा है । जो मनुष्य उस ग्रन्थके अनुसार जीवन व्यतीत करते हैं, उनके जीवनका बेड़ा सुखसे पार होता है।
इन चार कारणोंके अलावः बहुत शोक या चिन्ता-फिक्र करना, असमयमें बुढ़ापा पाना, बहुत राह चलना, अधिक मिहनत करना, अति मैथुन करना
और व्रण या घाव होना भी- क्षय रोगके कारण लिखे हैं । पर ये सब इन चारोंके अन्दर पा जाते हैं । देखने में नये मालूम होते हैं; पर वास्तव में इनसे जुदे नहीं हैं। ___ हारीत लिखते हैं-मिहनत करने, बोझा उठाने, लम्बी राह चलने, अजीर्णमें भोजन करने, अति मैथुन करने, ज्वर चढ़ने, विषम स्थानपर सोने और अति शीतल पदार्थोंके सेवन करनेसे कफ कुपित होता है। फिर वह अपने साथी वायु और पित्तको भी कुपित कर देता है । इस तरह वात, पित्त और कफ-इन तीनों दोषोंसे चय रोग होता है। __ और भी लिखा है-खाना कम खाने और कसरत जियादा करने, दिन-रात सवारीपर चढ़कर फिरने, अधिक मैथुन करने और बहुत लम्बी सफर करने या राह चलनेसे क्षय रोग होता है। इनके सिवा, फोड़े-फुन्सियोंके बहुत दिनों तक बने रहने, शोक करने, लंघन करने, डरने और व्रत-उपवास करनेसे मनुष्यको महा भयङ्कर यक्ष्मा रोग होता है।
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