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राजयक्ष्मा और उराक्षतकी चिकित्सा ।
देते हैं, पर औरतें इसकी ज़ियादा रोक करती हैं । यद्यपि हमारी समाजमें यह भैौड़ी चाल पड़ गई है और सबको इसके विपरीत काम करना बुरा मालूम होता है, तो भी "स्वास्थ्यरक्षा के लिये वेगोंको न रोकना चाहिये। जब ये सब निकलना चाहें, किसी भी उपायसे इन्हें निकाल देना चाहिये । जानवर अपने इन वेगोंको नहीं रोकते, इसीसे ऐसे पाजी रोगोंके पंजोंमें नहीं फंसते ।
(२) यक्ष्माका दूसरा कारण धातुओंका तय करना है। असलमें धातुओंके क्षयसे ही क्षय रोग होता है। अनेक ना-समझ नौजवान दमादम मैशीन चलाते हैं । उन्हें हर समय स्त्री-प्रसंग ही अच्छा लगता है। एक बार, दो बार या चार-छै बारका कोई नियम नहीं । 'अपनी पूंगी जब चाहे तब बजाई।' नतीजा यह होता है, कि वीर्यके नाश होनेसे मज्जा, अस्थि और मेद, मांस प्रभुति सभी धातुएँ क्षीण होने लगती हैं। इनके अाधारपर ही मनुष्य-चोला खड़ा रहता है । जब अाधार कमजोर हो जाता है या नहीं रहता है, तब चोला गिर पड़ता है । मतलब यह है कि, वीर्यके नाश होनेसे वायु कुपित होता है
और फिर वह मजा प्रक्षुति शेष धातुओंको चर जाता है--शरीरको सुखा डालता है, तब मनुष्य क्षीण हो जाता है । अतः दीर्घजीवन चाहनेवालोंको इस निश्चय ही प्राण-घातक रोगसे बचने के लिये अति मैथुनसे बचना चाहिये । शास्त्र-नियमसे मैथुन करना चाहिये । मैथुनसे जाहिरा अानन्द प्राता है, पर वास्तवमें यह भीतर-ही-भीतर जीवनी-शक्निका नाश करता और मनुष्यकी अायुको कम करता है। ____ अति मैथुनके सिवा, व्रत-उपवासोंका नम्बर लगा देना और दूसरोंको देखकर जलना-कुढ़ना या उनसे ईर्षा-द्वष रखना भी क्षयके कारण हैं । इनसे भी धातुएँ क्षीण होती हैं । हम हिन्दुओं और विशेषकर जैनी हिन्दुओंमें व्रतउपवासकी बड़ी चाल है । अाज एकादशी है, कल नरसिंह चौदस है, परसों रविवार है, इस तरह पाठ वारोंमें नौ उपवास होते हैं। जैनियोंमें एक-एक स्त्री महीनोंके उपवास कर डालती है। यही वजह है, कि हिन्दुओंकी अधिकांश स्त्रियाँ राजरोग, क्षय रोग या तपेदिकके चंगुलमें फंसकर भरी जवानीमें उठ जाती हैं । स्वास्थ्य-लाभके लिये उपवासकी बड़ी ज़रूरत है, पर जब स्वास्थ्य नाश होने लगे, तब लकीरके कीर होकर उपवास किये जाना, अपनी मौत श्राप बुलाना है । अतः उचितसे अधिक उपवास हरगिज़ न करने चाहिएँ।
(३) यक्ष्माका तीसरा कारण साहस है। जो लोग अपने बलसे ज़ियादा काम करते, रात-दिन कामके पीछे ही पड़े रहते हैं अथवा अपनेसे ज़ियादा ताक़तवरोंसे
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