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चिकित्सा-चन्द्रोदय । नींद--इन तेरहों वेगोंके रोकने से मतलब है । अगर यही बात है, तो इन तेरह वेगोंके रोकनेसे तो "उदावत" रोग होना लिखा है । कहा है:--
वातविण्मूत्रज़म्भाश्रु बोद्गारवमीन्द्रिय ।
चुत्तृष्णोच्छ्वास निद्राणां धृत्योदावर्त्तसंभवः ।। यह बात तो ठीक नहीं । कहीं वेगोंके रोकने से "उदावत” होना लिखा हो और कहीं "यक्ष्मा"।
चूँकि मल-मूत्र आदि वेगोंके रोकनेसे “उदावत" होता है, इससे मालूम होता है, यहाँ अधोवायु, मल और मूत्र--इन तीनों वेगोंसे मतलब है। "भावप्रकाश में ही लिखा है,-वातमूत्र पुरीषानि निगृहणामि यदानरः” अर्थात् अधोवायु, भूत्र और मलके रोकनेसे "क्षय” रोग होता है । भारद्वाजने स्पष्ट हो
वातमूत्र पुरीषाणां ह्रीभयाधैर्यदा नरः ।
वेगं निरोधयेत्तेन राजयक्ष्मादि सम्भवः । मनुष्य जब शर्म लाज और डरके मारे अधोवायु, मूत्र और मलको रोकता है, तब उसे “राजयक्ष्मा" आदि रोग हो जाते हैं। ___ मतलब यह है, कि जो लोग पास-पास बैठनेवालोंकी शर्मके मारे या अपने बड़ोंके भयसे अधोवायु या गुदाकी हवाको रोक लेते हैं अथवा किसी काममें दत्तचित्त रहने या मौक़ा न होनेसे पाखाने-पेशाबकी हाजतको रोक लेते हैं उनको "क्षय रोग" हो जाता है । यह बड़ी ग़लती है । पर हम लोगोंमें ऐसी चाल ही पड़ गई है, कि अगर कोई सभ्य या ऊँचे दर्जेका आदमी चार श्रादमियोंके बीचमें बैठकर हवा खोलता है, तो लोग उसके सामने ही या उसके पीठ-पीछे उसकी मसखरी करते हैं, उसे गँवार कहते हैं। इस सम्बन्धमें शाहन्शाह अकबर और बीरबलकी दिल्लगी मशहूर है। मर्दो की अपेक्षा औरतोंमें यह बेहूदा चाल
और भी ज़ियादा है। कन्याओंको छोटी उम्रमें ही यह पट्टी पढ़ा दी जाती है, कि अपने बड़ों या ख़ासकर सास, ससुर और पति श्रादिकी मौजूदगीमें अधोवायु कभी न खोलना, उसे ऊपर चढ़ा लेना या रोक लेना । इसका नतीजा यह होता है, कि मदों की निस्वत औरत इस मूजी रोगकी शिकार ज़ियादा होती हैं और चढ़ती जवानीमें ही बल-मांस-हीन. हाड़ोंके कङ्काल होकर यम-सदनकी राही होती हैं। मर्द तो अनेक मौकोंपर अधोवायुको खुलने
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